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Rediff.com  » News » 29 साल बाद श्रीनगर लौटने वाले कश्मीरी पंडित

29 साल बाद श्रीनगर लौटने वाले कश्मीरी पंडित

By ए गणेश नाडार
Last updated on: May 09, 2019 00:27 IST
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'कश्मीर धरती का स्वर्ग है। मुझे इस स्वर्ग में लौटना ही था।'

Roshan Lal Mawa a Kashmiri Pandit

अक्टूबर 13, 1990 को, रोशन लाल मावा को ज़ैना कदाल, श्रीनगर में स्थित उनकी दुकान पर उनके पेट में चार गोलियाँ मारी गयी थीं। उनकी जान बच गयी और वह अपने परिवार के साथ दिल्ली में बस गये।

इस दौर में आतंकवाद अपनी चरम सीमा पर पहुंच गया था, और पंडित कश्मीर घाटी छोड़ने के लिये मजबूर हो गये थे।

लगभग 29 साल बाद, उन्होंने अपनी दुकान फिर से खोली, जो पंडितों की संपत्ति पर आतंकवादियों के कब्ज़े की ख़बरों के बावजूद, लगभग तीन दशकों से खाली पड़ी थी।

इन तीन दशकों में रोशन लाल ने दिल्ली में सफल व्यापार खड़ा कर लिया, लेकिन उन्हें वहाँ घर जैसा महसूस नहीं हुआ। वह हमेशा वापस लौटना चाहते थे, और 73 वर्ष की उम्र में उन्हें लगा कि उन्हें पहला कदम उठाना ही होगा, ताकि उनके जैसे और लोगों को भी घर लौटने का हौसला मिल सके।

उन्हें बड़ी ख़ुशी महसूस हुई जब वहाँ के निवासियों ने सिर पर कपड़ा बांधने की पुरानी रस्म के साथ गले लगा कर उनका स्वागत किया। यही तो वो कश्मीरियत है, जिसे उन्होंने हमेशा से जाना है।

रोशन लाल मावा और डॉ. संदीप मावा, दोनों ही गर्मजोशी से भरे हैं, और हज़ारों मील दूर से फोन पर बात करने पर भी पिता-पुत्र की इस जोड़ी की आवाज़ में उत्साह साफ़ झलकता है।

"यहाँ की कश्मीरियत जैसी कोई चीज़ दुनिया में कहीं भी नहीं है। यह एक अद्भुत जगह है," रोशन लाल मावा ने ए गणेश नाडार / रिडिफ़.कॉम से एक बातचीत में कहा।

कश्मीर में आपका व्यापार कैसा चल रहा है, सर?

बिल्कुल फर्स्ट क्लास। मेरा एक महीने का माल दो दिनों में ही बिक गया। मेरा स्वागत करने के लिये मेरी दुकान पर भीड़ लगी रहती है।

क्या आपकी दुकान और घर इतने समय से खाली पड़े हुए थे?

हाँ, वो खाली ही थे। वो इतने सालों से खाली पड़े रहे। मेरे मुस्लिम भाइयों ने मेरी संपत्ति को महफ़ूज़ रखा है। उन्हें विश्वास था कि मैं लौटूंगा और आखिर मैं लौट आया।

आपका दिल्ली में सफल व्यापार है, फिर भी आपने लौट आने का फैसला किया?

घर जैसी कोई जगह नहीं होती। यहाँ पर मुझे मिलने वाला प्यार और अपनापन वहाँ नहीं था। कश्मीर धरती का स्वर्ग है। मुझे तो इस स्वर्ग में लौटना ही था।

क्या सुरक्षा बलों और आतंकवादियों के बीच अक्सर होती मुठभेड़ों से आपको डर नहीं लगता?

आम लोगों का गोलीबारी से कोई लेना-देना नहीं है। ये पूरी लड़ाई जवानों और आतंकियों के बीच है।

यहाँ 99% जनता शांतिप्रिय है। उन्हें शांति चाहिये। ज़िंदग़ी छोटी सी है, और हर कोई शांति से जीना चाहता है।

कुछ असामाजिक तत्व भी हैं, जो डर फैलाते हैं, लेकिन शांति ज़रूर वापस लौटेगी।

अपनी रिपोर्ट में ज़रूर लिखियेगा कि कश्मीर सुरक्षित जगह है, यहाँ के लोग बहुत ही प्यारे और नेक हैं।

यहाँ की कश्मीरियत जैसी कोई चीज़ दुनिया में कहीं भी नहीं है। यह एक अद्भुत जगह है।

शांति वापस आयेगी और हर किसी को यहाँ वापस लौट आना चाहिये।


डॉ. संदीप मावा: 'इस जगह पर भगवान का आशीर्वाद है'

Roshan Lal Mawa and Dr. Sandip Mawaघाटी छोड़ते समय आपकी उम्र कितनी थी और आपने अपनी मेडिकल की पढ़ाई कहाँ से की?

अपना घर छोड़ते समय मैं 12 साल का था। मैंने अपनी मेडिसिन की पढ़ाई जम्मू में की।

घर वापस लौट कर कैसा लग रहा है?

यह एक बेहद पॉज़िटिव एहसास है। यहाँ के लोगों ने हमारा ऐसा स्वागत किया है, जैसे वो हमेशा हमारी राह देख रहे थे।

इस जगह भगवान का आशीर्वाद है। बुरी नज़र लग गयी और 30 साल पहले यहाँ हिंसा शुरू हो गयी।

मैं सामाजित कार्यों में व्यस्त रहता हूं। मेरा अपना संगठन है, जम्मू ऐंड कश्मीर रीकन्सिलिएशन फ्रंट, और मैं उसी में व्यस्त रहता हूं।

कुछ साल पहले आप 50 पंडितों को वापस लाये थे।

जी हाँ! और उस समय भी मेरी रिडिफ़ से बात हुई थी।

क्या यह सच है कि आप इस बार और 200 पंडितों को लाने की सोच रहे हैं?

जी हाँ, यह सच है। ये लोग मुंबई, दिल्ली और जम्मू में फैले हुए हैं।

क्या उनकी दुकानें और घर भी खाली पड़े हैं?

नहीं, ये 200 लोग आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग से हैं। हम हमारे समाज कल्याण संगठन की मदद से उन्हें यहाँ बसाने की कोशिश कर रहे हैं।

क्या आपको उनकी सुरक्षा की चिंता है?

और लोगों को संदेह होगा, मुझे नहीं है। 98% लोग शांतिप्रिय हैं।

ग़ौर करें कि आज के युवाओं ने आतंकवाद का वो दौर कभी नहीं देखा जो हमने 1990 के दशक में देखा था। इनका जन्म बाद में हुआ है।

आपको पता है, ये लोग मुझसे क्या कहते हैं? वो कहते हैं, 'हमने आतंकवाद के बारे में सुना है और हम जानते हैं कि हमारे बड़ों ने आपके साथ क्या किया। हम आपको गले लगाकर बताना चाहते हैं कि हम आपसे प्यार करते हैं।'

दुःख की बात है कि कुछ भटके हुए युवा आतंकवाद की ओर खिंच जाते हैं।

हम यहाँ सुरक्षित हैं। हम इस देश का एक सफल राज्य बन सकते हैं। हम यहीं रहना चाहते हैं और यहीं के हो के रहेंगे।

क्या आपके जम्मू ऐंड कश्मीर रीकन्सिलिएशन फ्रंट को सरकार या जनता से कोई आर्थिक सहायता मिलती है?

नहीं, बिल्कुल नहीं। हमें सरकार या मेरे दोस्तों या जनता से कोई आर्थिक सहायता नहीं मिलती। लोग हमें पैसे दें, तो भी हम स्वीकार नहीं करते।

मैं एक सफल व्यापार चलाता हूं और इस संगठन का पूरा खर्च मैं ही उठाता हूं।

ये मेरे और भगवान के बीच का सौदा है।

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