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इस डॉक्टर ने बीमार माता-पिता के बारे में मोदी को पत्र क्यों लिखा

By ए गणेश नाडार
November 04, 2019 15:01 IST
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'मैं सरकार से बस इतना चाहता हूं सरकार सुनिश्चित करे कि गंभीर बीमारी से जूझ रहे माता-पिता के बच्चों की नौकरी माता-पिता की देख-भाल के कारण चली न जाये।'

Photograph: Reuters

कृपया ध्यान दें, कि तसवीर सिर्फ सांकेतिक उद्देश्य से प्रकाशित की गयी है। फोटोग्राफ: रीयूटर्स

डॉ. विजय कुमार गुर्जर देश के एक जाने-माने मेडिकल कॉलेज और अस्पताल, ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज़, नई दिल्ली के गेरिऐट्रिक विभाग में एक असिस्टंट प्रोफ़ेसर हैं।

इस माह की शुरुआत में इस डॉक्टर ने प्रधानमंत्री को एक पत्र लिख कर उन्हें बीमार बुज़ुर्ग माता-पिता और उनका ख़्याल रखने वाले बच्चों के सामने आने वाली समस्याओं के बारे बताया।

पिछले 7 वर्षों से एम्स में कार्यरत डॉ. गुर्जर ने इस दौरान बुज़ुर्ग सदस्यों की बीमारी से उनके परिवारों पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन किया है, जिन्होंने अपनी व्यस्त दिनचर्या में से थोड़ा समय निकाल कर रिडिफ़.कॉम  के ए गणेश नाडार से बड़ों की देखभाल के बारे में बात की।

बड़ों के बीमार पड़ जाने पर आपने उनके परिवारों के बारे में कौन सी चीज़ देखी है?

यह एक रेफ़रल अस्पताल है, जिसके कारण मरीज़ उन्हें गंभीर बीमारी होने पर ही यहाँ आते हैं। परिवार के एक सदस्य को मरीज़ के साथ रहना पड़ता है, बीमारी गंभीर होने पर कई बार यह अवधि दो महीनों की भी हो सकती है।

कामकाज़ी लोगों को अपने माता-पिता के साथ यहाँ रहने के लिये छुट्टी नहीं मिलती और मुझे यह उचित नहीं लगता। हम सभी को अपने बच्चों का ख़्याल रखने के लिये छुट्टी लेने की अनुमति है, तो फिर बुज़ुर्ग माता-पिता की देखभाल के लिये छुट्टी क्यों नहीं मिलनी चाहिये?

माता-पिता के साथ यहाँ रहने के कारण कई लोगों की नौकरी चली गयी है। नौकरी चली जाने पर आर्थिक समस्याऍं शुरू हो जाती हैं।

क्या प्रधान मंत्री मोदी को पत्र लिखने का यही कारण था?

मैंने प्रधान मंत्री को पत्र लिख कर संगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोगों के लिये माता-पिता की सेवा के लिये छुट्टी उपलब्ध कराने की व्यवस्था करने का निवेदन किया है।

क्या उन्होंने जवाब दिया है?

अभी तक तो नहीं। मैंने यह पत्र 1 अक्टूबर को ही भेजा था, लेकिन मुझे विश्वास है कि उनका जवाब ज़रूर आयेगा। मैंने पहले भी उन्हें पत्र लिखे हैं और उन्होंने जवाब दिया है।

आपने पत्र में किन बीमारियों को व्यक्त किया है?

मैंने कैंसर, लकवा, मस्तिष्क के स्ट्रोक और डीमेंशिया जैसी बीमारियों का नाम लिया है, जिनके ठीक होने की प्रक्रिया लंबी और कष्टदायक होती है और मरीज़ के साथ हर समय परिवार के किसी सदस्य का होना ज़रूरी होता है।

आपको यह भी जानना चाहिये कि भविष्य में यह समस्या बढ़ने वाली है, क्योंकि हमारी जनसंख्या की उम्र बढ़ रही है और पिछले वर्षों में भारतीय लोगों की औसत आयु बढ़ी है।

क्या ऐसा हो सकता है कि लोग आपके द्वारा प्रस्तावित देखभाल की छुट्टियों का ग़लत इस्तेमाल करें?

दुनिया में हर चीज़ का ग़लत इस्तेमाल किया जा सकता है। लेकिन दुरुपयोग के डर से कोई सकारात्मक पहल न करना सही नहीं है।

बीमारी के अलावा, क्या आपने बुज़ुर्गों की देखभाल से जुड़ी अन्य समस्याओं का भी अध्ययन किया है?

मैंने देखा है कि ज़्यादातर बुज़ुर्ग लोग अकेलापन महसूस करते हैं, क्योंकि उनके बच्चे घर से दूर काम करते हैं।

लोगों को अपने अकेले माता-पिता के साथ समय बिताने के लिये भी छुट्टी मिलनी चाहिये। न सिर्फ छुट्टी, बल्कि साथ ही उन्हें अवकाश यात्रा भत्ता भी दिया जाना चाहिये। सोचिये कि लोग कितने ख़ुश होंगे अगर आप उन्हें बस उनके माता-पिता के साथ बिताने के लिये हर साल दो सप्ताह की छुट्टी दें।

और उनके माता-पिता को दुगुनी ख़ुशी होगी।

देखभाल करने वालों के सामने क्या समस्याएँ आती हैं?

जब हम बच्चे होते हैं, तब पेशाब और शौच करने पर हर बार हमारे माता-पिता हमारे शरीर की सफ़ाई करते हैं। लेकिन बुढ़ापे में माता-पिता के पेशाब और शौच को धोने की ज़िम्मेदारी जब लोगों को कंधे पर आती है, तो मैंने देखा है कि ज़्यादातर लोग इससे कतराते हैं।

पुरुष महिलाओं से कहीं ज़्यादा कतराते हैं, बेटी या पोती अपने माता-पिता के शरीर को धोने में झिझक महसूस नहीं करती, लेकिन पुरुष ऐसा नहीं करते। कुछ मर्द अपने बच्चों के लिये भी यह काम नहीं करते।

हमारे समाज की परवरिश ही ऐसी है, और इसे बदलना ज़रूरी है।

माता-पिता की स्थिति क्या होती है?

माता-पिता को भी शर्म महसूस होती है जब उनके बच्चे उनके गुप्तांगों को देखते हैं, सिर्फ डीमेंशिया की स्थिति में ऐसा नहीं होता, क्योंकि उसमें मरीज़ को पता नहीं होता कि क्या हो रहा है। लेकिन स्थिति की मांग होने पर हमें ऐसा करने के लिये तैयार रहना चाहिये।

बच्चों को यह कह कर अपने माता-पिता को मनाना चाहिये कि आपने मेरे बचपन में जो काम मेरे लिये किया है, बस वही सेवा आज मैं लौटा रहा हूं।

ऐसी स्थिति में कई माता-पिता सोचने लगते हैं कि वे अपने बच्चों पर बोझ बन गये हैं।

माता-पिता को ऐसा महसूस न होने देना बच्चों की ज़िम्मेदारी है। उन्हें जताना चाहिये कि इसका कारण उनका प्यार और उनकी ज़िम्मेदारी है।  

मैं सरकार से बस इतना चाहता हूं सरकार सुनिश्चित करे कि गंभीर बीमारी से जूझ रहे माता-पिता के बच्चों की नौकरी माता-पिता की देख-भाल के कारण चली न जाये।

ऐसा होने पर पूरे परिवार पर आर्थिक बोझ बढ़ जाता है और नाती-पोतों को तकलीफ़ उठानी पड़ती है, जो नागरिकों के साथ एक तरह का अन्याय है।

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ए गणेश नाडार
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