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गेम ओवर रीव्यू: नॉकआउट तापसी हैं इस किलर थ्रिलर की जान

By सुकन्या वर्मा
Last updated on: June 15, 2019 19:20 IST
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'गेम ओवर  एक दमदार कहानी है जिसने अर्थपूर्ण मनोरंजन के महत्व को समझा है,' सुकन्या वर्मा ने कहा।

Taapsee Pannu

क्या ऐसा हो सकता है कि आपको डर और सुख का एहसास एक साथ हो?

डायरेक्टर अश्विन सरावनन की गेम ओवर  एक ऐसी ही अनोखी थ्रिलर है, जो 103 मिनट में आपको डराती भी है और खुशी भी देती है।

गेम ओवर  की कहानी भयानक सोच और रोंगटे खड़े कर देने वाले ख़ौफ़ पर आधारित है, यह फिल्म जितनी भयानक महसूस होती है, उतने ही ठोस शब्द बोलती भी है।

मेरा मतलब डायलॉग्स से नहीं है, हिंदी-डब्ड वर्ज़न में ज़्यादा डायलॉग्स नहीं है, जो तमिल और तेलुगू में भी रिलीज़ हो रही है, मैंने इसे पहले ही देख लिया है।

समाज के सबसे गंभीर मुद्दों और महिलाओं की सुरक्षा तथा उनके साथ होने वाली दिल दहलाने वाली हिंसा की बात करने वाली सरावनन की यह फिल्म महिलाओं का हौसला बढ़ाने का काम करती है।

लेकिन इसमें ख़ौफ़नाक ऐक्शन के साथ एक सामाजिक मुद्दे को घर में घुसपैठ की एक डरावनी तर्ज पर बहुत ही शानदार नये अंदाज़ में पिरोया गया है, जो हमारे आज के आधुनिक समाज की झलक दिखाता है।

जैसा कि नाम से पता चलता है, गेम ओवर  ऊपरी और भीतरी तौर पर वीडियो गेमिंग के ऊपर आधारित है। फिल्म की मुख्य किरदार स्वप्ना (तापसी पन्नू) की बाँह पर बने पिक्सेलेटेड दिल के भीतर छुपे कन्सोल के टैटू से लेकर उसके घर पर चारों ओर बिखरे आर्केड गेमिंग के सामान तक, सरावनन ने घर से काम करने वाली वीडियो गेम निर्माता के रूप में उसकी पहचान मूवी के हर हिस्से में दिखाई है।

पैक मैन से स्वप्ना के प्यार और अंधेरी जगहों से उसके डर के साथ-साथ एक भयानक घटना की उसकी यादें एक उलझी हुई लड़की की तसवीर हमें दिखाती हैं।

झटकों और सदमों से घिरे उसके बीते हुए कल से साफ़ हो जाता है कि क्यों केयरटेकर कलम्मा (प्यारी विनोदिनी) पर वह इतनी ज़्यादा निर्भर है, जो उसका एकमात्र सहारा है। यहाँ तक कि मनश्चिकित्सक के पास भी वह उसके साथ जाती है।

उनका आपसी लगाव रोज़ उसके सामने आने वाली पुरुष प्रधानता -- दबी आवाज़ों और भद्दे डाउनलोड्स के रूप में -- के कड़वे घूंट को निगलना आसान नहीं बनाता।

एक सीरियल किलर शहर में घूम रहा है, और ऐसे में व्हीलचेयर से बंधी लड़की कैसे सुरक्षित हो सकती है। हालांकि कुछ समय के लिये गेम ओवर  अपने ख़ौफ़नाक नज़ारों से हट कर उसकी कमज़ोर भावनात्मक स्थिति पर भी नज़र डालता है।

सरावनन ने जिस तरह ज़िंदग़ी से लड़ने और डर से लड़ने के बीच स्वप्ना की दुविधा के बीच ख़ौफ़ और मौत का सामना करने की विडंबना को दिखाया है, वह सचमुच काबिले तारीफ़ है। तीसरा ऐक्ट शुरू होने के बाद कहानी की क्रूरता दिल दहला देती है। मेरा मुंह खुला का खुला रह गया था और उन ख़ौफ़नाक तसवीरों ने रात भर मुझे सोने नहीं दिया।

कष्ट इस मूवी की ख़ूबसूरती का एक हिस्सा है।

ए वसंत के कैमरे में बारीकी से ली गयी हर चीज़ -- समय, टैटू, तसवीरें, फोटोग्राफ, कोट्स, नोट्स, नोटिफिकेशन्स -- मूवी की कहानी की कड़ियाँ जोड़ती है। फिल्म अपने सस्पेंस को बनाये रखते हुए हर चीज़ आपको बारीकी से दिखाती है।

भयानक ट्विस्ट्स और चौंका देने वाले दृश्यों से भरे गेम ओवर  का तेज़-तर्रार ख़ौफ़नाक दृश्यों से रिश्ता फिल्म की शुरुआत में ही साफ़ हो जाता है।

अंधेरे और आवाज़ का सही इस्तेमाल करना हर हॉरर मूवी के लिये ज़रूरी होता है और रॉन ईथन योहान के शानदार, रोंगटे खड़े कर देने वाले बैकग्राउंड स्कोर के साथ फिल्म की सिनेमेटोग्राफी ने इस बात को पूरी तरह समझा है, और इसे बख़ूबी पेश किया है।

टाइमिंग इस फिल्म की ख़ूबसूरती है। और इसका लेखन भी पूरी तरह स्थिर, तेज़-तर्रार, बेधड़क और थोड़ा सा भावनात्मक है। कोई बकवास नहीं, कोई बेकार के दृश्य नहीं, गेम ओवर  में कोई भी चीज़ ज़रूरत से ज़्यादा नहीं है।

और न ही इसमें अगले पल का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। कहीं-कहीं पर मुझे साइको, प्रीडेटर, सोर्स कोड और हेरेडिटरी  की याद ज़रूर आई, लेकिन सिर्फ इसलिये, क्योंकि इस जॉनर में एक और दिग्गज शामिल हो गया है।

गेम ओवर  एक दमदार कहानी है जिसने अर्थपूर्ण मनोरंजन के महत्व को समझा है। इसके फेमिनिस्ट दृश्य हर जगह व्यावहारिक तो नहीं लगते, लेकिन इसका 'उठने और लड़ने' का जज़्बा मुझे बेहद पसंद आया।

और इसका एक बड़ा कारण है तापसी पन्नू के ठोस और नाज़ुक किरदार का शानदार प्रदर्शन। गेम ओवर  जैसी मूवीज़ दर्द और चिंता को दर्शकों तक पहुंचाने के लिये अपने मुख्य किरदार पर काफी हद तक निर्भर करती हैं।

उन्हें महसूस होने वाला हर झटका, हर सिसकी, ख़ून की हर बूंद, सूझ-बूझ की हर घड़ी आपको भी महसूस होनी चाहिये।

और तापसी ने इस किरदार को आपके दिल तक पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। 

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सुकन्या वर्मा
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