'विभूति बहुत बहादुर था।'
'वो हमेशा कहता था कि मैं पीछे नहीं रह सकता। वो हमेशा सबसे आगे रहना चाहता था।'
एक चचेरे भाई और मित्र ने मेजर धौंडियाल को याद करते हुए कहा , जिन्होंने सोमवार को अपनी मातृभूमि के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया था।
रोहन राज उस समय देहरादून में मेजर चित्रेश बिष्ट के अंतिम संस्कार में थे, जब उनके फोन पर बीप हुई। वॉट्सएप मैसेज में एक बहुत बुरा समाचार आया था - 8 साल तक उनके सहपाठी रहे मेजर विभूति धौंडियाल ने सोमवार सुबह पुलवामा में आतंकवादियों से लड़ते हुए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे।
वे एक ऐसे सैनिक के अंतिम संस्कार में थे, जो दो दिन पहले एक विस्फोटक उपकरण को निष्क्रिय करते हुए शहीद हो गया था, और अब उन्होंने एक ऐसे सैनिक व मित्र को खो दिया था, जिसके साथ उन्होंने स्कूल में ढेरों शरारतें की थी।
उनके दिमाग में उनका एक फोटोग्राफ आया, जिसमें वे स्कूल की युनीफॉर्म में नन्हे बच्चे के रूप में थे। उनको वो समय याद आया, जब वे देहरादून के एक कैफ़े में टकराए थे।
मेजर बिष्ट के अंतिम संस्कार में शामिल होने के बाद, वे मेजर धौंडियाल के घर गए। ये पहली बार था जब वे शहीद के घर पर श्रद्धांजलि देने जा रहे थे। वे इसलिए वहॉं नहीं गए, क्योंकि वे दोनों आदमी उनके स्कूल के भूतपूर्व विद्यार्थी थे; बल्कि इसलिए गए, क्योंकि उन्हें लगा कि इस समय देश में यह आवश्यक है।
"साधारण नागरिकों को तो लगता है कि जंग कहीं और चल रही है, पर अब यह हमारे घरों तक आ गई थी। मुझे जाना होगा", एक 34 वर्षीय इंजीनियर रोहन ने देहरादून के बुक नडर्स क्लब से निकलते हुए अर्चना मसीह /Rediff.com को बताया।
"मैंने जाने का फैसला किया, क्योंकि हमें अपना नज़रिया बदलना था। रक्षा सेवाओं को अपना समर्थन देने के लिए हम जो भी कर सकते हैं, हमें करना चाहिए। मैं यही कर सकता था। यह मेरा शहर है, ये हमारे लड़के थे।"
वहॉं लगभग 2,000 लोग थे, जिन्होंने मेजर बिष्ट को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
मेजर धौंडियाल के घर पर; उनका शव पहुँचा नहीं था, लेकिन भीड़ जमा होनी शुरू हो गई थी।
उनकी विधवा मॉं को अब तक यह नहीं बताया गया था कि उनका एकमात्र बेटा, जो तीन बेटियों के बाद हुआ था, आतंकवादियों से लड़ते हुए शहीद हो गया था। भीड़ को उनके घर से लगभग 50 मीटर दूर, सेना कर्मियों द्वारा लगाए गए बेरिकेड्स के पीछे रोक दिया गया था, जिससे ये दु:खद समाचार उन तक पहुँचने से रोका जा सके - कम से कम कुछ देर तक।
उन्हें केवल इतना ही बताया गया था कि उनका बेटा घायल है और उसकी स्थिति गंभीर है, लेकिन वह ठीक हो जाएगा।
"मैं कोई आक्रामक व्यक्ति नहीं हूँ, लेकिन आज मैं बहुत ही गुस्से में हूँ। बहुत से लोग हैं" रोहन देहरादून से फोन पर कहते हैं, जो कि सैन्य परंपरा वाला एक ऐसा शहर है, जहॉं तीन छावनियॉं और इंडियन मिलिटरी एकेडमी है।
"वहॉं के लोगों को देखते हुए, ऐसा लग रहा था कि यह हर किसी के लिए उसकी एक व्यक्तिगत क्षति है। ये परिवार भी हर उस परिवार की तरह हैं, जो अपने बच्चों के लिए सर्वोत्तम ही चाहते हैं।"
शहर के कई स्कूल शहीद के सम्मान में बंद रहे।
इस महीने सशस्त्र बलों से जुड़े तीन देहरादून के अधिकारी शहीद हुए हैं। स्क्वाड्रन लीडर सिद्धार्थ नेगी, जिनकी मृत्यु 1 फरवरी को बैंगलोर में मिराज 2000 क्रैश में हो गई थी।
33 वर्षीय मेजर धौंडियाल का विवाह अप्रैल 2018 में हुआ था और उन्होंने अपनी कश्मीर पोस्टिंग जॉइन करने से पहले दून में नया साल मनाया था। उनकी पत्नी दिल्ली में एक मल्टीनेशनल कंपनी में कार्यरत हैं।
"वे अभी-अभी घर आए ही थे और हमने दंपत्ति को खाने पर घर बुलाया था। उन्होंने खूब मस्ती की और कहा कि वे अप्रैल-मई में फिर से छुट्टी लेने की कोशिश करेंगे।" ये बात उनके चचेरे भाई रवि धौंडियाल ने कही, जो उनके घर से दो घर दूर ही रहते हैं।
"हम उनकी शादी के बाद उन्हें परंपरानुसार भोजन पर आमंत्रित नहीं कर पाए थे, इसलिए हमने उन्हें अभी बुलाया था. इस दंपत्ति में बहुत गहरी समझ और मेल था।" उन्होंने शोक संतप्त आवाज़ में कहा।
जैश-ए-मोहम्मद आतंकवादियों के विरुद्ध सोमवार की सुबह शुरू हुआ पुलवामा ऑपरेशन पिछली देर रात तक जारी था। गोलीबारी में जैश के तीन आतंकवादी मारे गए, जिनमें 14 फरवरी को हुई बमबारी से संबंधित एक पाकिस्तानी भी शामिल था।
मेजर धौंडियाल और तीन सैनिक - हवलदार शिवराम, सिपाही अजय कुमार और हरि राम मारे गए। इस मुठभेड़ में एक पुलिस कॉन्स्टेबल और एक नागरिक भी मारा गया।
घायलों में शामिल हैं ब्रिगेडियर हरबीर सिंह, जिन्हें टखने में गोली लगी है, और डीआईजी (दक्षिण कश्मीर) अमित सिंह, जिन्हें पेट में गोली लगी है। इनका अस्पताल में इलाज चल रहा है।
रवि ने कहा कि "विभूति बहुत बहादुर था।"
"उसमें आर्मी में शामिल होने का दम था। पहली कुछ कोशिशों में उसका चयन नहीं हुआ, लेकिन उसने उम्मीद नहीं छोड़ी और आखिरकार वह कामयाब हुआ।"
"वो हमेशा कहता था कि मैं पीछे नहीं रहना चाहता। वो हमेशा आगे ही रहना चाहता था," रवि ने ऐसा कहते हुए फोन रख दिया, क्योंकि उसके चचेरे भाई का पार्थिव शरीर पिछली शाम घर पहुँच गया था।