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Rediff.com  » Movies » मिशन मंगल रीव्यू

मिशन मंगल रीव्यू

By सुकन्या वर्मा
August 17, 2019 10:10 IST
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मिशन मंगल  ने अपना दिल सही जगह लगाया है, सुकन्या वर्मा ने महसूस किया।

The Mission Mangal

एक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक खोज के लिये, न्यूटन के सिर पर एक सेब गिरा, आर्किमिडीज़ एक बाथ टब के भीतर गये और विद्या बालन ने पूरियाँ तलीं।

विज्ञान एक बेहद विशाल और जटिल विषय है, लेकिन साथ ही यह हमारे सामने बिल्कुल सीधे और आसान तरीके से परोसा जाता है। कई बार, किसी महत्वपूर्ण चीज़ को आसान बनाने पर ही आम आदमी एक महान आदमी की सोच को समझ पाता है।

मिशन मंगल  ने अपना दिल सही जगह पर लगाया है, बात किसी भी विज्ञान की हो -- गृह विज्ञान या रॉकेट विज्ञान।

सितंबर 24, 2014 को भारत अपनी पहली ही कोशिश में अपने स्पेस प्रोब को मंगल ग्रह के अक्ष पर डालने में सफल होने वाला पहला देश बना। NASA से कई गुना कम बजट में किया गया यह काम कई विकसित देशों के आगे एक विकासशील देश की गौरवशाली कहानी बयाँ करता है।

ग्रहों की खोज के बीच देशभक्ति की भावना के महत्व को समझते हुए, डायरेक्टर जगन शक्ति की मिशन मंगल  एक लंबे अस्वीकरण के साथ शुरू होती है, जिसमें बताया गया है कि यह एक काल्पनिक कहानी है, जिसमें संस्थाओं, पेशेवरों, समयसीमाओं और वैज्ञानिक प्रक्रियाओं को मनोरंजन के लिये नाटकीय रूप दिया गया है।

शक्ति इस बात को समझते हैं कि इस पूरी वैज्ञानिक प्रक्रिया को आम आदमी नहीं समझता और न तो उन्हें स्पेससूट में अंतरिक्ष भेजा जा सकता है, इसलिये उन्होंने मंगलयान के वैज्ञानिक और तकनीकी विषयों को कार/क्रिकेट/खाना पकाने जैसी मिसालों तथा परखे हुए बॉलीवुड के अलंकारों के साथ समझने में आसान और ऐक्शन-पैक्ड बना दिया है।

आगे की कहानी दर्शकों को ख़ुश करने वाले शुद्ध देसी स्पेस ड्रामा से भरा है, जिसे देख कर इंडियन स्पेस रीसर्च ऑर्गनाइज़ेशन के लोग भी दंग रह जायेंगे।

रॉकेट लाँच से पहले पंडितों  द्वारा की जाने वाली पूजा के दृश्यों से लेकर मौसम के बदलाव और मंगल के अक्ष पर घूमते अंतरिक्ष यान के साथ पलट -जैसे सस्पेंस भरे पलों के साथ, मिशन मंगल  ने मुश्किलों और सहनशीलता के बीच एक संतुलित वातावरण तैयार करने के सभी साधन जुटाये हैं।

किसी तरह की वास्तविक कठिनाई के अभाव में, यह स्क्रिप्ट टेढ़े सीनियर और उनके बेतमलब ईगो, पैसों की कमी और ख़राब मौसम जैसे परखे हुए तरीकों को अपनाती है।

जब मिशन मंगल  कड़ियों को जोड़ते लोगों पर अपना ध्यान केंद्रित करती है, तो आप भी उनके आसमानी सपनों में विश्वास करने लग जाते हैं।

मंगल मिशन के डायरेक्टर के रूप में अक्षय कुमार एक निम्नवर्गीय टीम के नेता के किरदार में जँच रहे हैं। बस मूवी यह फैसला नहीं कर पाती कि उसे उनकी महानुभाव छवि को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाना है, शानदार इमेजरी को उभारना है या फिर उनकी ट्रेडमार्क राष्ट्रभक्ति का लाभ उठाना है।

इस दुविधा के बावजूद 'डोंट ऐंग्री मी' की धमकी देने वाले अभिनेता को 'फ़ायर मैक्सिमम थ्रस्टर्स' का निर्देश देते देखना अच्छा लगता है।

भारतीय वैज्ञानिकों और संस्थाओं के प्रति मिशन मंगल  का सम्मान दिल को छू लेता है।

लेकिन अक्षय कुमार ने अपने प्रोजेक्ट के लिये पैसे जुटाने के उद्देश्य से महान वैज्ञानिक और पूर्व राष्ट्रपति डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम के साथ टेलीफोन पर बातचीत में बैंड बाजा बारात  की अनुष्का शर्मा की तरह ख़ुशामद वाला अंदाज़ पेश किया है, जो कुछ हज़म नहीं होता।

हालांकि पोस्टर पर सिर्फ अक्षय कुमार दिखाई देते हैं, लेकिन मिशन मंगल  की सबसे ख़ूबसूरत बात है विद्या बालन का वंडर वूमन जैसा दमदार किरदार। उनका सुलू वाला अंदाज़ मूवी के आदर्शवाद और खोज को और मज़बूती देता है और उन्हें बिना किसी मेलोड्रामा के नौकरी और घर दोनों संभालते देखना बेहद अच्छा लगता है।

उनकी शादी बच्चों जैसे स्वभाव वाले एक आदमी (संजय कपूर ने एक पसंद न आने वाले किरदार को बख़ूबी निभाया है और अपने पुराने राजा  वाले दिनों की झलक दी है) से हुई है, जो घर या बच्चों की ज़िम्मेदारी नहीं उठा सकता, उनके किरदार ने धैर्य और संयम की मिसाल पेश की है।

जिस तरह उन्होंने अपने बारे में हो रही बात-चीत के ज़रिये अपने बेटे को ज्ञान दिया है या जिस तरह उन्होंने चिल्ड बियर की बात पर अपने पति को पछाड़ा है, उसे देख कर कहा जा सकता है कि एक बार फिर बालन ने लाजवाब परफॉर्मर की अपनी छवि में चार चांद लगा दिये हैं।

उन्हें देखना आपको ख़ुशी देता है!

और यही बात मोगरे  और खादी साड़ियों में सजी मिशन मंगल  की अन्य महिलाओं के बारे में भी कही जा सकती है। एकदिशी, घिसे-पिटे पुराने किरदारों में बंधे होने के बावजूद उन्होंने शानदार प्रदर्शन किया है।

मर्फी बेड्स और पोर्टेबल फर्निचर में नित्या मेनन की कॉम्पैक्ट डिज़ाइनिंग बख़ूबी उभर कर आयी है। उन्होंने दिखाया है कि गर्भावस्था व्यावसायिकता की राह का रोड़ा नहीं बन सकती।

बेढब तापसी पन्नू ने अपने सेना के जवान पति से कर्तव्य के महत्व को सीखा। मुहम्मद ज़ीशान ने अपने प्रभावशाली कैमियो में आदर्श पति की मिसाल पेश की है।

कीर्ति कुल्हाड़ी ने अनोखी संवेदनशीलता के साथ एक तलाकशुदा महिला का किरदार निभाया है, जो अपने लिये किराये का मकान ढूंढने की कोशिश कर रही है।

कैज़ुअल सेक्स करने वाली सोनाक्षी सिन्हा का सपना है US जाना -- हालांकि उनका घमंड देख कर लगता है कि वह NASA या नेमन मार्कस में काम करने जा रही है।

ISRO के कुंवारे, लड़कियों से दूर रहने वाले, ज्योतिषशास्त्र के दीवाने शर्मन जोशी ने अपने 3 ईडियट्स  के किरदार को आगे बढ़ाया है, और इसके बारे में चुटकुले भी कहे हैं -- नाम में गांधी और काम में क्विट इंडिया । उनका कुंवारापन और रॉकेट लॉन्च की उपमाऍं इससे ख़ूबसूरत नहीं हो सकती थीं।

और साठ वर्ष की उम्र के एक किरदार (प्रभावशाली एच जी दत्तात्रेय) ने ओल्ड इज़ गोल्ड की कहावत को सच साबित किया है।

उनके मिशन में टांग अड़ाई है दिलीप ताहिल ने, जो NASA से लौटे बेहद घमंडी किरदार में हैं। वह उच्च वर्ग के समर्थक हैं और अक्षय कुमार के प्रोजेक्ट को नाकाम करना उनका मक़सद है। लेकिन उनकी बातों में बनावटी अमरीकी लहजा प्रियंका चोपड़ा को भी पीछे छोड़ देता है।

मिशन मंगल  की कहानी में NASA को ISRO के मॉडल स्कूल के एक राजपूत की तरह दिखाया गया है, जैसे मंगल मिशन के पूरे होने के बाद न्यू यॉर्क टाइम्स में एक कार्टून द्वारा भारत की उपलब्धि का मज़ाक बनाया जाना, ताकि दर्शकों की भावनाओं को उत्तेजित किया जा सके।

ऑफ़िस की मरम्मत के दौरान मूर्खतापूर्ण डांस को छोड़ दिया जाये, तो अक्षय और बाकी सभी किरदार बेहद प्रभावशाली लगते हैं।

मिशन मंगल  कामकाज़ी माँओं, होने वाली माँओं, सहयोगी जीवनसाथियों, स्वतंत्र महिलाओं के लिये मिसाल पेश करता है, इस्लाम से नफ़रत की ख़िलाफ़त के साथ-साथ महिलाओं के लिये साधन उपलब्ध कराने की बात करता है, बुज़ुर्गों के सहकार्य और एक सर्वसमावेशी, सुरक्षित कार्यस्थल की भी झलक देता है।

अच्छे, आदर्शवादी, विकासशील पुरुषों ने महिलाओं के एक कदम पीछे चलना स्वीकार किया है, और महिलाओं ने कहीं भी नारी-प्रधानता का रोना नहीं रोया है।

यह एक प्रभावशाली और नपा-तुला चित्रण है, जिसमें शामिल कई भाषणों में से अंत में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण हमें याद दिलाता है कि पृथ्वी से उम्मीदें न रह जाने पर, हमारे पास मंगल का सहारा ज़रूर होगा।  

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सुकन्या वर्मा
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