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Rediff.com  » Movies » रीव्यू: मलाल में कई दमदार परफॉर्मेंसेज़ हैं, लेकिन...

रीव्यू: मलाल में कई दमदार परफॉर्मेंसेज़ हैं, लेकिन...

By आरुष एस
July 06, 2019 14:53 IST
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...कहानी उबाऊ है, आरुष एस. को लगता है।

Malaal

फिल्म के विश्लेषण पर उतरने से पहले मैं बताना चाहूंगा कि मीज़ान जाफ़री और शर्मिन सेगल अच्छे परफॉर्मर्स हैं और उन्हें इस घिसी-पिटी, खिंची हुई लव-स्टोरी से कहीं बेहतर लॉन्च मिलनी चाहिये थी।

1990 के दशक पर फिल्माई गयी मलाल  की शुरुआत काफी साधारण है।

चॉल में रहने वाला एक लोकल टपोरी (जाफ़री) आस्था त्रिपाठी से मिलता है, जो चार्टर्ड अकाउंटंसी की पढ़ाई कर रही है। वो रईसी की ज़िंदग़ी जीने के बाद हाल ही में चॉल में रहने आई है, क्योंकि उसके पिता कुछ आर्थिक मुश्किलों का सामना कर रहे हैं।

इसकी शुरुआत तू-तू मैं-मैं से होती है, लेकिन बाद में शिवा को आस्था से प्यार हो जाता है।

लेकिन, जाहिर है कि आस्था एक रूढ़िवादी परिवार से है और उसके पिता उसकी शादी किसी रईस घर में कराना चाहते हैं।

अगर फिल्म बीस साल पहने बनी होती, तो शायद दर्शकों को पसंद आ जाती।

लेकिन तब से अब तक, ज़िंदग़ी काफ़ी बदल चुकी है।

संजय लीला भंसाली द्वारा प्रोड्यूस की गयी इस फिल्म के हर फ्रेम पर पूरा ध्यान दिया गया है, जो शानदार विज़ुअल्स में उभर कर आता है।

चॉल की छोटी-छोटी बारीकियों -- और धूम-धाम से मनाये जाने वाले त्यौहारों -- को बख़ूबी शूट किया गया है।

आपको टाइमलाइन में संजय लीला भंसाली की हम दिल दे चुके सनम  के पोस्टर दिखाई देते हैं।

म्यूज़िक, ख़ास तौर पर टाइटल ट्रैक और नाद खुला  इस फिल्म की शोभा बढ़ाता है।

प्लॉट बेतुका है, और इसे बेमतलब घुमाया गया है। सब-प्लॉट्स कहानी को और भी कमज़ोर कर देते हैं।

शुरुआत में शिवा को एक राजनैतिक पार्टी का हिस्सा दिखाया गया है, जो प्रवासियों को अपना निशाना बनाती है। लेकिन लीड ऐक्टर को प्यार हो जाने के बाद यह चर्चा ही ख़त्म हो जाती है।

तमिल डायरेक्टर सेलवाराघवन की 2004 की हिट 7जी रेनबो कॉलनी  की इस रीमेक में डायरेक्टर मंगेश हडावले (जिनकी फिल्मोग्राफी में पुरस्कार विजेता टिंग्या, देख इंडियन सर्कस  और टपाल  शामिल हैं) ने उसी कहानी को अलग तरीके से कहने की पूरी कोशिश की है, लेकिन उनकी कोशिश नाकाम रही है।

रोमैंटिक ड्रामा के नाम पर, मलाल  में हर सही चीज़ डाली गयी है - प्रेम कहानी में दम तो है - लेकिन रोमांस कभी उभर नहीं पाता, और इसलिये यह कहानी दर्शकों को ज़्यादा प्रभावित नहीं कर पाती।

नये कलाकारों ने अच्छा काम किया है, ख़ास तौर पर मीज़ान जाफ़री ने, जिनका अभिनय बेहद प्रभावशाली है।

लीड ऐक्टर्स के कारण ही आप 136 मिनट की इस फिल्म को झेल पाते हैं।

स्क्रिप्ट में कुछ नया नहीं है और कहानी बेहद उबाऊ है।

मासूम प्यार की ख़ूबसूरत कहानी लगने की जगह यह एक उबाऊ पेशकश जैसी लगती है। 

 

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