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Rediff.com  » Movies » "क्या मेरे मरने के बाद लोग मुझे याद करेंगे?"

"क्या मेरे मरने के बाद लोग मुझे याद करेंगे?"

By रमेश एस
Last updated on: April 02, 2019 16:55 IST
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'कुछ लोग कहेंगे वो अच्छा आदमी था, कुछ कहेंगे अच्छा हुआ चला गया।'

Jackie Shroff in Hero.

फोटो: जैकी श्रॉफ़ हीरो में।

जैकी श्रॉफ़ का इंटरव्यू हमेशा मज़ेदार होता है।

फिल्म स्टार, जिन्होंने जॉन अब्राहम के साथ रॉ  में काम किया : रोमियो अकबर वॉल्टर में जॉन अब्राहम के साथ पर्दे पर अपना जलवा दिखाने वाले मूवी स्टार ने अपने लंबे करियर पर नज़र डालते हुए रिडिफ़.कॉम संवाददाता रमेश एस से कहा, "मुझे अभी भी नहीं पता कि मैं फिल्म इंडस्ट्री में कैसे आ गया। मुझे नहीं पता था कि कौन सी फिल्म करनी चाहिये और कौन सी नहीं। कुछ फिल्मों से मुझे पैसे मिले, तो कुछ से अवॉर्ड्स।"

आपकी पुरानी फिल्में आज भी हमारे गाँवों से लेकर शहरों तक लोकप्रिय हैं।

भारत के गाँव मेरी ज़िंदग़ी हैं!

मैंने दूध का कर्ज़  नाम की एक फिल्म की थी, जिसकी चर्चा गाँवों में आज भी होती है।

तेरी मेहरबानियाँ  फिल्म भी गाँवों में लोकप्रिय है।

लेकिन अगर हम ग़र्दिश  की बात करें, तो उन्हें पता भी नहीं होगा कि वो कौन सी मूवी है।

मेरा मानना है कि फिल्मों को सबसे ज़्यादा पैसे ग्रामीण भारत से ही मिलते हैं; हमारी इंडस्ट्री काफ़ी हद तक उनपर निर्भर है।

असली ताकत वहीं है, मेट्रो सिटीज़ में नहीं।

आपका फैशन सेन्स हमेशा ही अनोखा रहा है। लोगों को आज भी त्रिदेव  वाला आपका स्टाइल याद है।

त्रिदेव  के गली गली में गाने में पहली बार किसी ऐक्टर ने जैकेट के ऊपर बांधणी प्रिंट पहनी थी।

मैंने माधुरीजी (दीक्षित) को भी उसी बांधणी से ढक कर गुंडों से बचाया था!

फोटो: त्रिदेव के गली गली में गाने में जैकी श्रॉफ़।

कई ऐक्टर आपको अपना आदर्श मानते हैं। आपको कैसा महसूस होता है?

मैं इसके लिये उनका शुक्रग़ुज़ार हूं।

मैं पार्टीज़ में उन सब से मिलता हूं और वो सब मुझे अपना दोस्त मानते हैं।

मुझमें शायद वो अपने पिता या बड़े भाई को देखते हैं।

मेरे कपड़े उन्हें कुछ ज़्यादा ही पसंद आते हैं। एक बार, मैंने धोती पर बूट्स पहन लिये, और उन्हें वो भी पसंद आ गया।

इतनी सफलता देखने के बावजूद आज भी आपके कदम ज़मीन पर हैं।

विनोद खन्ना, शशि कपूर और शम्मी कपूर जैसे धमाकेदार पर्सनैलिटी वाले सुपरस्टार्स की ज़िंदग़ियाँ देखने के बाद, आप खुद समझ जाते हैं कि आप उनके सामने कुछ भी नहीं हैं।

मेरा सौभाग्य है कि मैंने 250 से भी ज़्यादा फिल्मों में काम किया है।

ज़िंदग़ी बहुत छोटी है, और मुझे नहीं पता कि मेरे मरने के बाद लोग मुझे याद रखेंगे या नहीं।

कुछ लोग कहेंगे वो अच्छा आदमी था, कुछ कहेंगे अच्छा हुआ चला गया।

मैं हैरान था जब मेरे पिता चल बसे थे, लेकिन तभी मुझे अपनी ज़िंदग़ी का मोल समझ में आया।

आपको सामने आने वाली हर चीज़ को ख़ुशी-ख़ुशी स्वीकार करना चाहिये।

जो हमें नहीं मिला, वो हमारी क़िस्मत में नहीं था, तो उसपर आँसू बहाने का कोई फायदा नहीं।

हाल ही में मैं अपनी चॉल में गया और वहाँ रहने वाले कुछ स्टूडेंट्स की मदद की।

मैं कभी अपनी फिल्मों की फिक्र नहीं करता, क्योंकि एक पीआर टीम हमेशा रखी जाती है।

यह रवैया आपकी ज़िंदग़ी का हिस्सा है, और सभी के लिये लागू होता है --- मेरा बेटा टाइगर हो, जॉन (अब्राहम) हो, शाहरुख़ (ख़ान) हो, या सलमान (ख़ान) हो... कुछ बदलता नहीं है, बात वही होती है।

फोटो: जैकी अपने बेटे टाइगर के साथ।फोटोग्राफ: Jackie Shroff/Instagram के सौजन्य से

आपने अपने बच्चों की परवरिश कैसे की है?

मेरे बच्चों की परवरिश में मेरी माँ का बड़ा हाथ रहा है।

उनपर मेरी पत्नी और उसकी माँ का भी ध्यान रहता था।

मेरे साथ रहने पर वो गंदी भाषा सीख जाते थे!

लेकिन उन्होंने अच्छे और बुरे दिन देखे हैं।

बच्चे अपनी आँखों से देखते और सीखते हैं। वो बहुत ही जल्द चीज़ों को समझ जाते हैं।

उनकी परवरिश में मेरे परिवार की औरतों का हाथ रहा है, इसलिये वो काफी हद तक मुझसे अलग हैं।

फोटोग्राफ: Jackie Shroff/Instagram के सौजन्य से

आपको सुभाष घई ने 1983 में हीरो  में लॉन्च किया था, जो हिट हुई थी। लेकिन काश, फ़लक  और परिंदा  ने आपको आपकी पहचान दी।

मुझे अभी भी नहीं पता कि मैं फिल्म इंडस्ट्री में कैसे आ गया।

मुझे नहीं पता था कि मुझे कौन सी फिल्में करनी चाहिये और कौन सी नहीं।

कुछ फिल्मों से मुझे पैसे मिले, तो कुछ से अवॉर्ड्स।

उस समय मैं आँखें बंद करके मूवीज़ करता था।

आपने क्षेत्रीय फिल्में भी की हैं।

मुझे याद है कि मैंने एक तमिल फिल्म आरण्य कांडम  में काम किया था। इसकी काफी तारीफ़ हुई थी।

मुझे औरंगज़ेब  और धूम 3 आरण्य कांडम  के कारण ही मिली थी।

धूम 3 के डायरेक्टर (विजय कृष्ण आचार्य) ने तमिल फिल्म में मेरा काम देखा और आदित्य चोपड़ा को मेरा नाम सुझाया।

फोटो: टाइगर और उसकी माँ आयशा श्रॉफ़।फोटोग्राफ: Jackie Shroff/Instagram के सौजन्य से

आप असल ज़िंदग़ी में बेहद ज़िंदादिल इंसान हैं, लेकिन पर्दे पर आप अलग ही नज़र आते हैं।

मैं हमेशा पर्दे पर जग्गू दादा नहीं बना रह सकता। फिल्म के किरदार के अनुसार मुझे अपना व्यक्तित्व बदलना पड़ता है।

मैं हमेशा ही अपनी दुनिया में खोया रहने वाला इंसान रहा हूं, और आज भी हूं।

मैं ज़्यादा बात नहीं करता, लेकिन अगर मैं किसी के साथ खुल जाऊं, तो उसे अपने बेडरूम के क़िस्से भी सुना दूं।

हमें किसी फैन गर्ल का कोई वाकया बताइये।

मेरी ज़िंदग़ी में मेरी पत्नी के अलावा और कोई मेरे पीछे पागल नहीं है।

मुझे अपना पति बनाने के लिये पागल होना ज़रूरी है।

मुझे समझना बेहद मुश्किल है; और मेरी पत्नी ने मेरा पूरा ख्याल रखा है।

फोटो: जैकी श्रॉफ़ वर्दी में अपने आकर्षक व्यक्तित्व की झलक देते हुए।

लोगों ने आपके वर्दी वाले किरदारों को काफी पसंद किया है।

हाँ, मुझे भी ऐसा लगता है!

अपने बचपन में मैं (आइएनएस) अश्विनी (साउथ मुंबई का नौसैनिक अस्पताल) में भर्ती था।

मेरे अंकल वहाँ डॉक्टर थे।

मैंने उनकी वर्दी, व्यवहार और अनुशासन पर ग़ौर किया।

मैंने काफ़ी बारीक़ी से उनके चलने, बात करने, खड़े रहने और ग्लास पकड़ने के अंदाज़ पर ध्यान दिया।

वो लोग सब कुछ अपनी सीमाओं में रह कर करते हैं और अपनी सीमा को जानते हैं। वो कभी सीमा को पार नहीं करते।

इसके बाद, मुझे पता चला कि मेरी गर्लफ्रेंड (आयशा दत्त) के पिता रंजन दत्त एक रॉयल इंडियन एयर फोर्स पायलट और इंडियन एयर फोर्स में एक एयर वाइस मार्शल थे।

मुझे याद है कि उनसे पहली मुलाकात के समय डर के मारे मेरी हालत ख़राब हो गयी थी।

मैं बिल्कुल हीरो बन कर गया था और आयशा को मूवी दिखाने ले जाना चाहता था। इसके लिये मुझे उनकी इजाज़त चाहिये थी, लेकिन डर के मारे उनके सामने मेरे मुंह से एक शब्द नहीं निकला (हँसते हुए)!

क्या ज़िंदग़ी में आपको किसी बात का अफ़सोस है?

कोई अफ़सोस नहीं।

अगर आप ऐसा सोचने लगे, तो सब ख़त्म हो जायेगा। ज़िंदग़ी को उतनी गंभीरता से नहीं लेना चाहिये।

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