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शर्मनाक! मुंबई में हुई ऑनर किलिंग

Last updated on: July 22, 2019 10:13 IST

मुंबई के उपनगर में निर्दयतापूर्वक एक गर्भवती महिला की हत्या कर दी गयी।

और उसकी हत्या उसके ही पिता ने की, जो उसकी पसंद के लड़के से हुई उसकी शादी के ख़िलाफ़ थे। वैहायसी पांडे देनियल पूरे शहर को चौंका देने वाली इस वारदात की रिपोर्ट लेकर आई है।

Meenakshi Brijesh Chaurasia, murdered in cold blood. Photograph: Rajesh Karkera/Rediff.com

फोटो: मीनाक्षी बृजेश चौरसिया, जिनकी निर्दयतापूर्वक हत्या कर दी गयी। फोटोग्राफ: राजेश करकेरा/रिडिफ़.कॉम

"बॉडी लम्बा है?" उनसे तीखे स्वर में पूछा गया।

परिवार ने ख़ामोशी से ना में अपना सिर हिला दिया।

उत्तर पूर्व मुंबई के घाटकोपर पूर्व में स्थित एक सरकारी अस्पताल, राजावाडी हॉस्पिटल के मुर्दाघर के बाहर गेट के पास मक्खियों से भरे सीमेंट के फर्श पर दो शवयात्रा ऐम्ब्युलेंस कर्मचारी बाँस की एक अर्थी बांध रहे हैं।

उन्होंने चार ईंटों पर दो लंबे हरे बाँस के डंडे फैला रखे हैं।

यह सवाल पूछने वाला दूसरा आदमी मुर्दाघर से जूट की एक रस्सी भिगो कर लेकर आया, और उसने खड़े डंडों पर बाँस की नौ क्षैतिज डंडियों को बांधना शुरू किया।

पास ही घास की एक चटाई बिछी हुई है।

नहीं। लाश, जो अभी आई है, ज़्यादा लंबी नहीं है।

सिर्फ लगभग 4 फुट 10 इंच की काया होगी।

छोटी। पतली। असहाय।

उसे एक सफ़ेद कपड़े में लपेट कर रखा गया है।

हादसे से बौखलाये, फिर भी ख़ुद को शांत रखे हुए रिश्तेदार गठरी को खोलने के लिये आगे बढ़ते हैं।

वह एक मासूम, छोटी लड़की है।

उम्र?

मुश्किल से 20 साल।

उसके सुंदर, परी से चेहरे ने अब सदा के लिये अपनी आँखें बंद कर ली हैं, उसके चेहरे पर शांति के भाव हैं, ललाट पर बाईं ओर बड़ी, गहरी खरोंच और चोट के निशान हैं। गर्दन के बगल में और पीछे गहरे घाव हैं, जो चेहरे तक फैले हुए हैं। चेहरे को घेरे उसके घने काले बाल फर्श पर फैले हुए हैं।

उसका चेहरा मासूम है।

एक चेहरा, जिसने कभी प्यार और ख़ुशियों को देखा है।

लेकिन सिर्फ कुछ पल के लिये।

क्योंकि उसकी छोटी सी ज़िंदग़ी उसके ही पिता ने कसाई की छुरी की मदद से उससे छीन ली।

उसका नाम है मीनाक्षी चौरसिया, उम्र 20 वर्ष, पाँच महीनों की गर्भवती, जो घाटकोपर पश्चिम में छत्रपति शिवाजी महाराज अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से उड़ने वाले विमानों के मार्ग के ठीक नीचे बसे शिवपुरी चॉल, हिल नं 2, नारायण नगर में नीले दरवाज़े वाले एक छोटे से कमरे में किराये पर रहती थी।

उसकी हत्या उसके घर से कुछ गलियों की दूरी पर, एलबीएस रोड पर मधुबन टोयोटा डीलरशिप के पास शनिवार, जुलाई 13, 2019 को हुई -- जो कि एक ऑनर किलिंग (मान हत्या) थी -- इस तरह के अपराध मुंबई में काफ़ी कम देखे गये हैं।

ऑनर किलिंग?

मुंबई शहर के बीचों-बीच?

हम सोचते थे कि ऐसे अपराध पुराने ज़माने में, देश के ग्रामीण हिस्सों में यहाँ से हज़ारों किलोमीटर दूर हुआ करते थे -- लेकिन आज यही नृशंस हत्या मुंबई के उपनगर के भीड़-भाड़ वाले इलाके में हमारे सामने आई है।

Meenakshi and Brijesh Chaurasia on their wedding day.

फोटो: मीनाक्षी और बृजेश चौरसिया उनकी शादी के दिन पर।

मीनाक्षी को प्यार से अनु या सोनू बुलाने वाले उसके पति बृजेश सहदेव चौरसिया यूनियन बैंक के सामने, अक्षय बार के पास, एलबीएस मार्ग, घाटकोपर पश्चिम में पान की दुकान चलाते हैं, और उसकी हत्या कथित रूप से उसके पिता राजकुमार चौरसिया, 55 ने की है, जो पेशे से पानवाले ही हैं और माटुंगा, उत्तर मध्य मुंबई में छेड़ा जनरल स्टोर्स के बगल में अपनी दुकान चलाते हैं।  

उसकी ग़लती बस इतनी ही थी कि उसने अपने पिता और परिवार के ख़िलाफ जाकर उसी के गाँव के दूसरे चौरसिया से शादी कर ली।

पानवालों की एक विशेष जाति के दोनों ही चौरसिया परिवार अलाहाबाद ज़िले में, अलाहाबाद शहर के पश्चिम में बसे नुमैया दही गाँव से हैं।

बृजेश और मीनाक्षी एक-दूसरे को गाँव से ही जानते थे, उनके घर मुश्किल से एक किलोमीटर की दूरी पर थे और दोनों वहीं पढ़ा करते थे, बृजेश ने दसवीं तक की पढ़ाई की थी, जिसके बाद दोनों अलग-अलग मुंबई आ गये। बृजेश अब लगभग दस साल से मुंबई में हैं।

चार साल पहले उनकी पहचान प्यार  में बदलने लगी।

मीनाक्षी और बृजेश शादी करना चाहते थे। या बृजेश के बड़े भाई राकेश के शब्दों में, 'लव मैरेज चल रहा था।'

मीनाक्षी का परिवार उसकी शादी बृजेश से नहीं कराना चाहता था, क्योंकि दोनों नुमैया दही गाँव के थे, और शायद एक ही गोत्र से थे, बृजेश के परिवार को इस बात की जानकारी नहीं है, राकेश ने नफ़रत भरे स्वर में कहा, "हमारे गाँव में सब चलता है, पर उसके बाप लोगों को नहीं मंज़ूर था।"

मीनाक्षी के पिता और रिश्तेदार उसकी शादी गाँव से बाहर के, 35 साल की बड़ी उम्र के आदमी के साथ कराना चाहते थे।

Meenakshi and Brijesh Chaurasia on their wedding day.

फोटो: मीनाक्षी और बृजेश चौरसिया उनकी शादी के दिन पर।

मीनाक्षी ने इस रिश्ते (सगाई) के लिये मना कर दिया और उसके पिता, भाई और रिश्तेदारों के ख़िलाफ़ उठाये दूसरे कदम में, फरवरी में वह बृजेश के साथ अलाहाबाद से चार घंटों की दूरी पर स्थित सतना, मध्य प्रदेश भाग गयी, जहाँ बृजेश का एक दोस्त रहा करता था, और वहाँ दोनों ने मार्च 1, 2019 को कोर्ट में शादी कर ली।

इस बात को गंभीरता से लेते हुए, बृजेश के परिवार - उसके छः भाई हैं, जो मुंबई और दिवा, ठाणे में पानवाले काम करते हैं, उसके माता-पिता गाँव में हैं - ने सुरक्षा के लिये उनकी शादी मुंबई के कार्यक्षेत्र में दुबारा करवाई और एक वकील की सलाह ली।

तो 2 मई, 2019 को बांद्रा, उत्तर पश्चिम मुंबई न्यायालय में उन्होंने दुबारा शादी की - "लव मैरेज कराया"।

शिवपुरी चॉल में मीनाक्षी और बृजेश के साथ रहने वाले, दाढ़ी रखने वाले बृजेश के बड़े भाई राकेश ने उनकी दर्दनाक, दिल दहला देने वाली कहानी, जिसे वह "कांड" कहते हैं, रिडिफ़.कॉम के साथ एक गंभीर, शांत आवाज़ में बुधवार को, मीनाक्षी की शवयात्रा निकलने से पहले साझा की।

वह दिवा से वापस आ गये हैं। दो और भाई, उनकी पत्नियाँ, एक साला और कुछ दोस्त और भाइयों की पान दुकानों के मकान मालिक भी मदद के लिये आये हुए हैं और इस सीधे-सादे, सभ्य परिवार को अपना सहयोग दे रहे हैं।

बृजेश राजावाडी अस्पताल में नहीं हैं।

वह मीनाक्षी और अपने अजन्मे बच्चे के शव को निकालने के लिये घाटकोपर पुलिस स्टेशन से कुछ दस्तावेज़ लेने गये हैं।

पुलिस केसेज़ के शवों को मुर्दाघर ले जाने के लिये गेट से लगातार ऐम्ब्युलेंसेज़ का आना-जाना लगा हुआ है -- जिनमें दुर्घटना, हत्या और हर उस मामले का शिकार हुए लोग हैं -- जो परिवारजनों को स्तब्ध छोड़ जाते हैं।

ख़ाक़ी वर्दी पहने पुलिसकर्मियों के साथ एक ऐम्ब्युलेंस स्ट्रेचर पर एक नयी लाश लेकर आई है, जो प्लास्टिक में लिपटी हुई है और जिसके धूल से सने पैर ही दिखाई दे रहे हैं। पुलिसकर्मी और ऐम्ब्युलेंस के कर्मचारी इसे मुर्दाघर ले जा रहे हैं। रिश्तेदार और आते-जाते अंजान लोग बीच-बीच में ऐम्ब्युलेंसेज़ से लाशों को उतरता देखने के लिये रुक जाते हैं।

The locked blue door to the home the couple lived in. Photograph: Rajesh Karkera/Rediff.com

फोटो: इस जोड़े के घर का ताले से बंद नीला दरवाज़ा।  फोटोग्राफ: राजेश करकेरा/रिडिफ़.कॉम

बृजेश की दुकान से कुछ मीटर की दूरी पर पानवाले का काम करने वाले राकेश -- मुंबई के पानवाले दिन में 500 से 600 रुपये कमा लेते हैं -- ने बताया कि हालांकि सावधानी के तौर पर उन्होंने मीनाक्षी और राकेश को मुंबई में दुबारा शादी करने के लिये कहा था, लेकिन उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि मीनाक्षी को उसके परिवार से कोई ख़तरा भी हो सकता है। और बृजेश ने भी नहीं। क्योंकि ऐसी चीज़ें मुंबई में नहीं होती हैं।

अपनी भावज के बारे में बताते हुए राकेश कहते हैं: "लड़की बहुत अच्छी थी। संस्कारी थी। परिवार को लेके कैसे चलना है, वैसी वो थी।"

राकेश ने बताया कि जुलाई 13 को देर रात उसे बृजेश का कॉल आया। राकेश तलाकशुदा हैं और उनका परिवार कहीं और रहता है, वह उस दिन मुंबई में नहीं थे और अपने सबसे छोटे भाई के घर दिवा गये हुए थे।

रात 12.30 बजे अपनी पान दुकान बंद करके लौटे बृजेश ने देखा कि मीनाक्षी घर पर नहीं थी (वह रोज़ 7 बजे अपनी दुकान खोलते हैं और अक्सर आधी रात के बाद बंद करते हैं)।

राकेश को बृजेश का कॉल आया और उसने पूछा कि क्या वह उनसे मिलने दिवा गयी हुई है -- "घूमने आयी है क्या?" उसने अपने ससुर को भी फोन किया, लेकिन उन्होंने बताया कि वह उनसे मिले नहीं हैं। राकेश ने बृजेश को नज़दीकी पुलिस चौकी पर जाकर "एनसी" दर्ज करने के लिये कहा, लेकिन बृजेश ने ऐसा नहीं किया।

आस-पास की औरतों से पूछने पर पता चला कि मीनाक्षी शाम 4.30 या 5 बजे तक घर के लिये पानी भर रही थी और उसे शाम 6.30 या 7 बजे चॉल की गली से निकलते देखा गया था, और वो अपने फोन पर बात कर रही थी।

The 4-month-old baby in a polythene bag. Photograph: Rajesh Karkera/Rediff.com

फोटो: 4 महीने का बच्चा एक पॉलीथीन बैग में। फोटोग्राफ: राजेश करकेरा/रिडिफ़.कॉम

बृजेश रविवार की सुबह उठ कर नित्य-कर्म ख़त्म ही कर रहे थे कि तभी 7 बजे से पहले पुलिस उनके घर आयी और उन्हें चौकी ले गयी।

उन्हें बताया गया कि उनकी पत्नी की मौत हो गयी है और उसकी हत्या उसी ने की है। उसका ख़ून से सना शरीर एलबीएस मार्ग पर टोयोटा शोरूम के पास दो प्लास्टिक की बेंच के बीच पाया गया था।

राकेश: "पुलिसवाला बहुत मारे। पैर बांध के लटका दिये थे। आँख लाल है। गला सूजा हुआ है। हाथ पैर लाल है।"

बृजेश ने बार-बार उससे पूछ-ताछ करने वाले पुलिसकर्मियों से यही कहा कि वह मीनाक्षी की हत्या नहीं कर सकता, क्योंकि वह पूरे दिन अपनी दुकान पर था, और यह काम उसके पिता, उसके भाई, उसके जीजा और मीनाक्षी के चाचाओं का होगा।

राकेश ने याद करते हुए बताया कि बृजेश और मीनाक्षी की शादी के कुछ दिन बाद मीनाक्षी के पिता राजकुमार चौरसिया ने जोड़े से संपर्क करना शुरू किया और जब उन्हें पता चला कि मीनाक्षी पेट से है, तो उन्हें कहा कि उन्हें फिर से हिंदू रीति-रिवाज़ से शादी कर लेनी चाहिये।

वह दिखा रहे थे कि वह उन दोनों की मदद करना चाहते हैं और उनके घर फल लेकर भी आये थे।

बृजेश  को मीनाक्षी के पिता से डर तो था, लेकिन वह इसके बारे में ज़्यादा चिंतित नहीं था।

पिछले सप्ताह, राजकुमार चौरसिया ने मीनाक्षी को एक फोन और सिम ख़रीद कर दिया, ताकि बाप-बेटी एक-दूसरे से जुड़े रह सकें। फोन के इस तोहफ़े से बृजेश को थोड़ी चिंता हुई। उसने उसे यह तोहफ़ा लेने से मना किया और उसके पिता से कहा कि उन्हें उनसे कुछ भी नहीं चाहिये। लेकिन उसने इसे स्वीकार कर लिया।

शुक्रवार को, सुबह 3 बजे उसके पिता राजकुमार ने उसे फोन किया और मिलने के लिये बुलाया। बृजेश ने उसे उस समय पिता से मिलने जाने के लिये मना किया। शनिवार को राजकुमार का फिर से फोन आया। बृजेश को जानकारी थी कि मीनाक्षी के पिता उसे शनिवार को कुछ कपड़े देना चाहते हैं।

Rakesh Chaurasia, the dead woman's brother-in-law. Photograph: Rajesh Karkera/Rediff.com

फोटो: राकेश चौरसिया, मृत महिला के जेठ। फोटोग्राफ: राजेश करकेरा/रिडिफ़.कॉम

गवाहों ने बताया कि मीनाक्षी और राजकुमार 'टोटा (टोयोटा)' शोरूम के पास झगड़ते दिखाई दिये थे। रिक्शा चालक या तो संशय से या उत्सुकता से वहाँ देखने के लिये जमा हो गये थे। राजकुमार ने उन्हें वहाँ से भगा दिया और कहा कि यह बाप-बेटी के बीच की बहस है।

और वहीं आखिरी बार मीनाक्षी को जीवित देखा गया था।

पुलिस ने बृजेश के कार्यस्थल के आस-पास के गवाहों -- वॉचमैन, होटल के कर्मचारी इत्यादि -- को स्टेशन बुलाया और उन्हें पता चला कि वह पूरे दिन दुकान पर ही था। उसके फोन के जीपीएस रेकॉर्ड ने उसके दावे को पुख़्ता किया। साथ ही उसकी दुकान के पास लगे कैमरे ने भी।

बृजेश को सोमवार को पुलिस हिरासत से छोड़ दिया गया।

राकेश ने रिडिफ.कॉम को बताया कि बाद में घाटकोपर पुलिस स्टेशन से एक टुकड़ी माटुंगा गयी और मंगलवार को उन्होंने राजकुमार को पकड़ा, जिसने बाद में अपना गुनाह कबूल कर लिया।

लेकिन पुलिस ने जानकारी के अभाव में मीनाक्षी के परिवार के अन्य सदस्यों -- एक भाई, दो चाचा, एक दामाद को गिरफ़्तार नहीं किया -- लेकिन उनके अनुसार इसमें उनका भी हाथ हो सकता है।

Outside the morgue. Photograph: Rajesh Karkera/Rediff.com

फोटो: मुर्दाघर के बाहर। फोटोग्राफ: राजेश करकेरा/रिडिफ़.कॉम

बृजेश अब भ्रूण को मुक्त कराने के लिये आवश्यक दस्तावेज़ों के साथ पुलिस स्टेशन से लौट आये हैं।

वह मध्यम कद के शांत, सीधे, विनम्र व्यक्ति हैं। सिर के बीच में उड़ते बालों के साथ, वह लंबे बाल और ठुड्डी पर थोड़ी सी दाढ़ी रखते हैं। उन्होंने एक स्ट्राइप्ड टी-शर्ट और तीन-चौथाई लंबाई वाली चेक्ड शॉर्ट्स और रबर की चप्पलें पहनी हैं।

उनकी भावशून्य, बंद आँखें लाल हैं और उनके पैरों और टखनों पर चोट के निशान हैं।

वह अभी भी स्तब्ध हैं। शिथिल हैं।

उन्होंने बताया: "नहीं थी। आजू-बाजू लोग से पूछा। चॉल के लोग बोले कि उसके पापा आये थे। मतलब नीचे थे। पापा नीचे बुला दिये थे।"

Meenakshi and Brijesh Chaurasia on their wedding day.

फोटो: मीनाक्षी और बृजेश चौरसिया उनकी शादी के दिन पर।

"दोपहर को फोन आया था, जब खाना खाने गया था। वाइफ़ बोली थी, 'पापा आने वाले हैं, मुझे कपड़ा दिलवाने'। तो मैं बोला, 'किधर जाना मत। हम दिला देंगे कपड़ा।' उसके बाद फोन नहीं की दुबारा। और मैं बिज़ी था और मैंने ध्यान नहीं दिया।"

"रात को फोन लगाया था उनके पापा को। वो भी नहीं उठाये। मेरे वाइफ़ को फोन लगाया। नहीं उठाया। 3 बजे। सुबह फिर फोन किया तो बोलते हैं मेरे पास नहीं है।"

उन्होंने बताया कि वह राजकुमार चौरसिया से ज़्यादा मिले नहीं हैं, शादी के बाद से उनकी मुलाकात सिर्फ दो या तीन बार हुई है, लेकिन उस आदमी की कुछ बातें उन्हें खटकती थी। "कभी सोचा भी नहीं था।"

उन्होंने मीनाक्षी के पिता को उनसे दूर रहने के लिये कहा था। "थोड़ा डरते थे। कभी क्या करेगा।"

Brijesh Chaurasia, eyes bloodshot. Photograph: Rajesh Karkera/Rediff.com

फोटो: बृजेश चौरसिया, जिनकी आँखें लाल हो गयी हैं। फोटोग्राफ: राजेश करकेरा/रिडिफ़.कॉम

धीमे स्वर में उन्होंने कहा कि वह न्याय मिलने का इंतज़ार कर रहे हैं: "मुझे इंसाफ़ चाहिये। फाँसी हो जाये या कुछ भी हो। जितने लोग इनवॉल्व्ड हैं, उन सब को सज़ा मिलनी चाहिये।"

"मेरा एक बच्चा मरा, वो भी चार-पाँच महीना का। इतने बेरहमी से नहीं मारना चाहिये। अगर मेरे से कोई दुश्मनी थी, तो मुझे मारना चाहिये था। उसे क्यों मारा। मीनाक्षी तो औरत जात की थी। वो कुछ भी नहीं कर सकती थी।"

अपनी पत्नी के बारे में बताते हुए बृजेश ने दुःख भरी आवाज़ में कहा: "मीनाक्षी बहुत अच्छी थी। कभी झगड़ा नहीं। मैं कभी कुछ बोला नहीं उनको। वह एक शांत लड़की थी... उसको मोबाइल लेना था। मैं बोला थोड़ा दिन बाद दिला दूंगा... चार महीने ही हुए थे।"

बृजेश मुर्दाघर के भीतर चले गये हैं।

ताज़े दस्तावेज़ों से 150-दिन के भ्रूण को मुक्त कराने की अनुमति मिल गयी है। बृजेश मुरुगन पैलेस द स्टील शॉप के लोगो वाली एक सफ़ेद प्लास्टिक की थैली के साथ बाहर आये हैं, जिनमें अजात बच्चे को एक 6-इंच की प्लास्टिक की बोतल में रखा गया है।

उन्होंने एक फ़्लैट में जमा हुए उसके रिश्तेदारों को खोखले स्वर में बताया कि यही उनका बच्चा है। रिवाज़ के अनुसार भ्रूण को दफ़्न किया जाता है।

इसके बाद मीनाक्षी के शव को बाहर निकाला गया। एक महिला पुलिसकर्मी उनकी मदद कर रही हैं, जिन्होंने बताया कि घाटकोपर मुर्दाघर में आज तक ऐसा मामला नहीं आया था।

बृजेश स्तब्ध और भावशून्य चेहरे के साथ क्रिया-कर्म शुरू करते हैं।

मीनाक्षी को वापस शिवपुरी चॉल, जहाँ बृजेश के अनुसार उनका कोई नहीं है, ले जाने की जगह परिवार ने उन्हें सीधे नज़दीकी घाटकोपर हिंदू श्मशान भूमि ले जाने का फैसला किया है।

चौरसिया बंधुओं ने मृतसंस्कार की व्यवस्था करने वाले ऐम्ब्युलेंस कर्मचारी से बात कर ली है, जो मुर्दाघर के गेट के पास ही एक स्टॉल चलाते हैं। ऐम्ब्युलेंस से श्मशान भूमि तक सिर्फ एक किलोमीटर दूर जाने के लिये उनसे 4,000 रुपये लिये जा रहे हैं।

शरीर को खोलने की जगह बृजेश ने मीनाक्षी के चेहरे को खोला और भावशून्य निगाहों से उसे देखा।

उनकी आँखों में आँसू भर आये हैं, लेकिन उन्होंने तुरंत ख़ुद को संभाल लिया। ऐसा लगता है, जैसे रविवार से उनपर बरपे दुःख की जगह अब ग़ुस्से ने ले ली है।

बृजेश ने मीनाक्षी के शव पर लाल शादी का कपड़ा लपेटना शुरू किया, जो अपने पति से पहले मरने वाली सुहागन हिंदू महिलाओं को पहनाया जाता है -- काली बिंदियों और नीले किनारों वाली एक गहरे लाल रंग की साड़ी को उसके ऊपर डाला गया है। और उसके बाद लाल पेटीकोट और साड़ी-ब्लाउज़ का कपड़ा।

अंत में, उन्होंने मक्खियों को उड़ा कर सुनहरी जालियों वाली एक महीन, पारदर्शी लाल चुन्नी को उसके चेहरे पर डाल दिया।

सिर पर घूंघट लिये मीनाक्षी की भाभियों (जेठानियाँ) ने उसके पाँवों से सफेद कपड़ा हटाया और चांदी के बिच्छू (पाँव की उंगलियों की अंगूठी), टखने पर पायल उसे पहनाये और उसके पाँवों को महावर (लाल रंग) से रंग दिया। उन्होंने बिंदी, सिंदूर और मंगलसूत्र की एक डिब्बी निकाली।

बृजेश ने मीनाक्षी की मांग में सिंदूर भरा। ये प्रक्रियाऍं बिल्कुल ख़ामोशी से हो रही हैं, कोई किसी से एक शब्द भी नहीं कह रहा।

बृजेश और उसके भाइयों ने मीनाक्षी के शव पर फूलों की माला और बहुत सारे फूल चढ़ाये।

इसके बाद ऐम्ब्युलेंस कर्मचारियों ने घास की चटाई को अर्थी पर डाला और उसे ऐम्ब्युलेंस में डाल कर श्मशान भूमि ले जाया गया।

श्मशान भूमि के गेट के बाहर शव को एक सीमेंट के चबूतरे पर रख कर ऐम्ब्युलेंस कर्मचारी तुरंत चले गये।

लेकिन कुछ ही मिनट बाद श्मशान भूमि के कर्मचारियों ने चौरसिया बंधुओं को भीतर जाने से रोक दिया क्योंकि उन्हें आवश्यक BMC की पावती (नगरपालिका की स्वीकृति की पर्ची) नहीं मिली है।

यह साधारण लोगों का एक परिवार है, जो ज़्यादा पैसे वाला या ज़्यादा पढ़ा-लिखा नहीं है, और शायद उन्होंने इससे पहले घर पर किसी की मौत नहीं देखी है, उन्हें कुछ पता नहीं है और वे बेहद परेशान हैं। यह सप्ताह उनके लिये दुःखों का अंबार लेकर आया है और उनका दर्द ख़त्म होता नहीं दिखाई देता।

वो सोच रहे हैं कि अस्पताल में किसी ने उन्हें पावती के बारे में क्यों नहीं बताया। और अगर वे ज़्यादा पेट्रोल जला कर थोड़ी दूरी पर चेंबूर में स्थित BMC द्वारा अधिकृत श्मशान में जाते, तो यह समस्या सामने नहीं आती।

परिवार के एक सदस्य को नज़दीकी BMC कार्यालय में भेजा गया।

Brijesh Chaurasia waiting to cremate his wife Meenakshi. Photograph: Rajesh Karkera/Rediff.com

फोटो: बृजेश चौरसिया अपनी पत्नी के दाह-संस्कार का इंतज़ार करते हुए। फोटोग्राफ: राजेश करकेरा/रिडिफ़.कॉम

अगले चार से पाँच घंटे मीनाक्षी का दाह-संस्कार नहीं हो पाया और तेज़ धूप में तेज़ी से ख़राब होते उसके मृत शरीर पर मक्खियों की भीड़ लगती रही, जबकि सफ़ेद कपड़े पहने अन्य पैसे वाले मृतक नारियल, फूलों के साथ हॉन्डा, टोयोटा और ह्युन्डे में आते-जाते रहे।

जब सूर्यास्त के कुछ समय पहले पावती आ गयी, तो श्मशान के कर्मचारियों ने कहा कि उन्हें भ्रूण के लिये भी दस्तावेज़ चाहिये। BMC ने ऐसे बच्चे के मृत्यु प्रमाणपत्र देने से मना कर दिया, जिसका जन्म ही नहीं हुआ है। अस्पताल ने भी कोई मदद नहीं की।

खट-पट और कई घंटों तक चलती रही।

श्मशान के कर्मचारियों ने कहा कि वे मीनाक्षी का दाह-संस्कार कर सकते हैं, अगर भ्रूण को वापस उसके शरीर में डाल दिया जाये। राजावाडी अस्पताल ने कहा कि अगर शरीर वापस उनके पास लाया जाये, तो वे भ्रूण को दुबारा शरीर में डाल सकते हैं। लेकिन ऐम्ब्युलेंस तो कई घंटे पहले आधे घंटे के काम के लिये 4,000 रुपये ऐंठ कर जा चुकी थी।

अंत में, उनके दोस्तों के बहुत ज़्यादा आग्रह करने पर राजावाडी अस्पताल सोमैया ग्राउंड्स पर ऐम्ब्युलेंस भेजने के लिये तैयार हो गया। शरीर को फिर वापस भेजा गया और भ्रूण को फिर से मीनाक्षी के शरीर में डाल कर अंग्रेज़ी में छपी रिपोर्ट में बदलाव किये गये। परिवार को इस बात की चिंता थी कि वे मीनाक्षी की रिपोर्ट में लिख देंगे कि वह गर्भवती नहीं थी। लेकिन वो दस्तावेज़ पढ़ नहीं सकते थे।

मीनाक्षी बृजेश चौरसिया का दाह-संस्कार तकरीबन रात 8 बजे हुआ, जिसकी ग़लती बस इतनी थी कि उसने अपने पिता की नज़र में ग़लत लड़के से शादी कर ली। 

वैहायसी पांडे देनियल