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'एक फ़ौजी का सम्मान देश का सम्मान है'

November 12, 2019 19:07 IST

'नायकों का गुणगान न हो तो कोई बात नहीं, लेकिन नायकों का अपमान कतई नहीं होना चाहिये।'

शहीद मेजर अक्षय गिरीश की माँ, मेघना गिरीश ने रिडिफ़.कॉम  की अर्चना मसीह को कश्मीर में आतंकियों से लड़ाई के दौरान शहीद हुए अपने बेटे के लिये इंसाफ़ पाने की अपनी कोशिशों के बारे में बताया।

Meghna Girish surrounded by photographs, uniforms, medals that belonged to her soldier-son. 

फोटो: अपने फ़ौजी बेटे की तसवीरों, वर्दियों, मेडल्स से घिरीं मेघना गिरीश। सभी फोटोग्राफ: रिडिफ़.कॉम  के लिये सीमा पंत

मेजर अक्षय गिरीश ने जैश-ए-मुहम्मद के आतंकवादियों से अपनी ज़िंदग़ी की आख़िरी जंग लड़ी और मासूम जानों को बचाने में अपनी जान निछावर कर दी।

अब उनकी माँ मेघना गिरीश अपने शहीद बेटे के सम्मान के लिये लड़ाई लड़ रही हैं।

बंगलुरू में उनके घर के दरवाज़े पर तो उनका और उनके पति का नाम लगा है, लेकिन भीतर आपको सिर्फ उनके फ़ौजी बेटे की तसवीरें, वर्दियाँ, मेडल्स और अन्य यादग़ार चीज़ें दिखाई देंगी।

जम्मू और कश्मीर में शहादत के तीन साल बाद भी मेजर अक्षय उनके घर के सबसे ख़ास सदस्य हैं।

घर की दीवारें उनकी यादों से सजी हैं।

उनकी तसवीर के नीचे ताज़े फूलों का एक गुलदस्ता, उनकी ज़िंदग़ी भर की यादों का एक एल्बम और एक ग्राफिक पैनल रखा है, जिसमें उनकी आख़िरी लड़ाई दिखाई दे रही है, जिसमें उन्होंने अपने प्राणों की आहुति दे दी थी।

"अक्षय यहाँ पर था, जब आतंकियों ने इस खिड़की से उसपर गोली चलाई और ग्रेनेड फेंका," एक पिक्चर पैनल की ओर इशारा करते हुए श्रीमती गिरीश ने कहा, जो कि नवंबर 2016 के उस दिन घेराबंदी की चपेट में आयी इमारतों का एक नमूना है।

The room where Mrs Girish and her husband spend a lot of time, and it is like a museum to Major Akshay Girish's memory, with his poems, pictures, uniforms, watches, sunglasses, name plate etc.

फोटो: वह कमरा, जहाँ श्रीमती गिरीश और उनके पति अपना ज़्यादातर समय बिताते हैं, और यह कमरा उसकी यादों, उसकी कविताओं, तसवीरों, वर्दियों, घड़ियों, सनग्लासेज़, नेम प्लेट इत्यादि के एक संग्रहालय की तरह है।

आतंकवादी बहुत ही सुनियोजित तरीके से हमले की योजना बना कर आये थे। वे कैम्प के भीतर घुसे, उन्होंने चार सैनिकों को मारा और दो इमारतों पर कब्ज़ा कर लिया, जो अधिकारियों और उनके परिवारों के आवासीय क्वॉर्टर थे।

मेजर अक्षय के नेतृत्व में क्विक रेस्पॉन्स टीम की ओर से असरदार जवाबी हमले से एक बड़ी त्रासदी टल गयी।

उस सुबह सात भारतीय सैनिक शहीद हो गये, जिनमें मेजर अक्षय शामिल थे।

मेजर की युनिट ने उनका नाम शौर्य चक्र के लिये प्रस्तावित किया, लेकिन इसकी जगह उनका नाम थलसेना के पत्रों में दिखाई दिया, जिनमें उनकी सेवा और बहादुरी के कार्य की सराहना की गयी, लेकिन उन्हें वीरता पुरस्कार के योग्य नहीं माना गया।

"वह ढाई घंटे से अपनी टीम के लीडर के रूप में आतंकियों से लड़ रहा था। वह खुले में था, जबकि आतंकियों को इमारत के भीतर होने का लाभ मिल रहा था। वह जानें बचाने के लिये भीतर गया। उसकी टीम ने सुनिश्चित किया कि आतंकी भाग न पायें, उन्होंने अधिकारियों, उनके परिवारों पर हमला करने की आतंकियों की योजना को असफल कर दिया, और बंधक बनाये जाने की स्थिति को टाल दिया। उसने अपनी जान दाँव पर लगा कर सेना के धर्म और सम्मान का पालन किया। अगर यह वीरता का काम नहीं है, तो मुझे नहीं पता वीरता किसे कहते हैं?" श्रीमती गिरीश ने पूछा।

The staircase is lined with happy pictures of the young Major Akshay Girish. 'He was a remarkable boy,' says Mrs Girish. 

फोटो: सीढ़ियाँ युवा मेजर के ख़ुशी के पलों की तसवीरों से सजी हैं। 'वह बहुत ही अच्छा लड़का था,' श्रीमती गिरीश ने कहा।

वह अपने दुःख और क्रोध को सराहनीय विनम्रता से ढँकती हैं।

सेना के अधिकारी की बेटी, एक भारतीय एयर फोर्स पायलट की पत्नी और एक शहीद बेटे की माँ होने के नाते श्रीमती गिरीश एक प्रतिष्ठित महिला हैं, जिन्हें सरकार पर पूरा भरोसा है और उन्हें उम्मीद है कि उनके बेटे के साथ हुए अन्याय को सुधारा ज़रूर जायेगा।

उन्होंने एक याचिका के माध्यम से सरकार से पूछा है कि वीरता पुरस्कार के लिये प्रस्तावित होने के बावजूद उनके बेटे को सिर्फ एक ज़िक्र ही क्यों मिला।

"कोई पुरस्कार ज़रूरी नहीं है। मेडल पहनने के लिये अक्षय तो अब नहीं रहा। हम बस इतना चाहते हैं पत्रों में भेजे गये उस ज़िक्र को भी निकाल लिया जाये, क्योंकि नायकों का गुणगान न हो तो कोई बात नहीं, लेकिन नायकों का अपमान कतई नहीं होना चाहिये।

"सैनिक सिर्फ अपने सम्मान के लिये लड़ता है। हमारी मांग बस इतनी है कि अगर इसमें कोई ग़लती या लापरवाही हुई है, तो सुधार किया जाना चाहिये।"

The sitting room is a lovingly created museum to Major Akshay's memory.

फोटो: सिटिंग रूम को बड़े प्यार से मेजर अक्षय की यादों का संग्रहालय बना दिया गया है।

श्रीमती गिरीश ने तत्कालीन रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण को ई-मेल लिखा था, जिन्होंने एक समिति को इस मामले की जाँच के आदेश दिये थे।

श्रीमती गिरीश और क्विक रेस्पॉन्स टीम के सभी सदस्यों ने जनवरी 2019 में समिति के सामने तीन दिनों तक गवाही दी।

इस समिति में सेना के साथ-साथ आम नागरिकों को भी शामिल किया जाना था, लेकिन इस पैनल में सिर्फ सेना के सदस्य दिखाई दिये।

उनकी गवाही के बाद सितंबर में उन्हें भारतीय सेना के सार्वजनिक सूचना अपर महानिदेशालय से एक ही जवाब मिला कि इस मामले की जाँच की गयी है और इसमें किसी समीक्षा की आवश्यकता नहीं है।

"यह कथन रक्षा मंत्री के आश्वासन के ख़िलाफ़ जाता है। तो फिर मुझे थलसेना समिति के सामने गवाही के लिये क्यों बुलाया गया?", श्रीमती गिरीश ने पूछा।

Mrs Meghna Girish, daughter, wife and mother of officers of the armed forces, in her garden.

फोटो: श्रीमती मेघना गिरीश, सशस्त्र सेना के अधिकारियों की बेटी, पत्नी और माँ, अपने बगीचे में।

उन्होंने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को दो आवेदन पत्र लिखे हैं, जिनके जवाब आने बाकी हैं।

उन्होंने अपनी याचिका को प्रधान मंत्री की शिकायत निवारण वेब साइट पर भी रेजिस्टर किया है और उन्हें एक रेस्जिट्रेशन नंबर मिला है कि उनकी शिकायत प्रक्रियाधीन है।

"यह मुश्किल है, लेकिन आपको सरकार पर विश्वास बनाये रखना चाहिये। मैं एक देशभक्त भारतीय हूं और मैं सही प्रक्रिया द्वारा न्याय की यह लड़ाई लड़ रही हूं। मोदीजी पर मेरा पूरा विश्वास है और मैं इस विश्वास को टूटने नहीं दूंगी, इसमें कितना ही लंबा समय क्यों न लग जाये," श्रीमती गिरीश ने कहा।

मेजर अक्षय की युनिट और रेजिमेंट ने भी पत्र लिख कर समीक्षा की मांग की है।

"यह न्याय और एक सैनिक के सम्मान की बात है। निर्णय लेने वालों को अपने सैनिकों के साथ खड़े होना चाहिये। उन्हें इस बात को प्राथमिकता देनी चाहिये, क्योंकि एक फ़ौजी का सम्मान देश का सम्मान है।"

Photographs, uniforms, medals that belonged to martyred Major Akshay Girish.

फोटो: शहीद मेजर अक्षय गिरीश की तसवीरें, वर्दियाँ, मेडल्स।

श्रीमती गिरीश का कहना है कि वह दोषदर्शी नहीं हैं और वह सशस्त्र सेना का सम्मान करने वाली एक देशभक्त भारतीय हैं, लेकिन सरकार की तरफ़ से जवाब मिलने में इतना समय लगना चिंताजनक है।

उन्हें यह भी समझ में नहीं आता कि जब अधिकारियों को रोमांचक खेल-कूद के लिये वीरता पुरस्कार दिये गये हैं, तो दुश्मन के सामने उनके बेटे की बहादुरी सम्मान के योग्य क्यों नहीं है?

लिविंग रूम में रखी मेजर अक्षय की तसवीरों में से एक है उसकी छः-वर्षीय बेटी नैना द्वारा बनाई गयी ड्रॉइंग।

वह अक्सर अपने पिता के चित्र बनाती रहती है और अपने दादा-दादी से उन्हें उसके पिता के क़रीब रखने के लिये कहती है।

उनकी शहादत के बाद उनकी पत्नी और बेटी डेढ़ साल तक घर पर थे।

हाल ही में, उनकी पत्नी ने दूसरी शादी कर ली और श्रीमती गिरीश गर्व और प्यार से अपनी बहू को अपनी बेटी बुलाती हैं।

"उसकी पत्नी की सास अब कोई और है, तो अब वह मेरी बेटी है," श्रीमती गिरीश मुस्कुराते हुए कहती हैं।

वे पास ही रहते हैं और श्रीमती गिरीश अक्सर अपनी पोती को स्कूल से ले आती हैं।

A photograph of Major Akshay's young family and a message for his 6-year-old daughter.

फोटो: मेजर अक्षय के युवा परिवार की तसवीर और 6-वर्ष की बेटी के लिये एक संदेश।

मेजर अक्षय की पत्नी, जुड़वाँ बहन और पिता श्रीमती गिरीश की न्याय की इस लड़ाई में उनका साथ दे रहे हैं।

"भले ही मैं इस लड़ाई का चेहरा हूं, लेकिन वे सभी मेरे पीछे खड़े हैं। मुझे और भी कई लोगों से ताक़त मिलती है। मेरे साथ काफ़ी लोगों का सहयोग है।"

इस परिवार ने मेजर अक्षय गिरीश फाउंडेशन शुरू किया है, जो 1971 की लड़ाई के वृद्ध सैनिकों को दिसंबर 15 को सम्मानित करेगा।

प्रसिद्ध मेजर जनरल इयान कोर्डोज़ो इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि होंगे।

अपने शहीद बेटे की तसवीर के आगे रखे ग़ुलदस्ते में नये फूल लगाते हुए श्रीमती गिरीश ने कहा, कि उनके बेटे का अपमान न होने देना उनके लिये मायने रखता है।

"उसने अपनी आख़िरी लड़ाई लड़ी है। अगर वह वापस लौटता तो शायद मेडल मायने रखता, लेकिन माँ होने के नाते उसका अपमान न होने देना मेरी ज़िम्मेदारी है।"

"अक्षय कभी अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटा, तो हम कैसे हट सकते हैं?"

अर्चना मसीह