'हम भारतीय गणतंत्र और भारतीय संविधान का पक्ष लेते आये हैं। जबकि दूसरा पक्ष (अलगाववादी) भारतीय संविधान, गणतंत्र और राज्याधिकार पर सवाल उठाता आया है। धारा 370 को समाप्त करने के इस फ़ैसले से उनका मुद्दा अब सही साबित हो गया है।'
तारिक़ हमीद कारा ने कश्मीरियों पर हो रहे अत्याचार को रोकने और कश्मीर समस्या का हल ढूंढ पाने में पीडीपी-भारतीय जनता पार्टी सरकार की असफलता का विरोध करते हुए अपनी लोक सभा सीट और पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया था।
यह 2016 की बात है, जिसके बाद वह काँग्रेस पार्टी में शामिल हो गये।
वर्तमान में कारा ग़ुलाम नबी आज़ाद और डॉ. करण सिंह जैसे अन्य कश्मीरी नेताओं के साथ काँग्रेस पार्टी के नीति निर्धारण दल के सदस्य हैं।
सोमवार को नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा सीमा पर स्थित इस राज्य को विशेष दर्जा देने वाली धारा 370 को समाप्त करने की घोषणा के कुछ ही समय बाद कारा ने रिडिफ़.कॉम के सैयद फ़िरदौस अशरफ़ से बात की।
"हम इस बात के पक्षधर थे कि भारतीय संविधान में लोगों की शिकायतों को सुनने और दूर करने की क्षमता है। अब हम क्या कहें," कारा ने कहा।
धारा 370 को समाप्त करने के इस ऐतिहासिक फैसले पर आपका क्या कहना है?
यह भारतीय गणतंत्र के लिये एक काला दिन है। दरअसल यह गणतंत्र नहीं, यह तानाशाही है।
और जिस तरह से व्यवस्था को कुचल कर अपने काबू में किया जा रहा है, ऐसा न पहले कभी देखा है, न सुना है। पहले इसे सभ्यता और विचारों के मतभेद के रूप में दिखाया जा रहा था, लेकिन यह अब धर्म की लड़ाई का रूप ले चुका है।
मुझे नहीं लगता कि इसे भारतीय गणतंत्र के एक काले दिन से ज़्यादा और कुछ कहा जा सकता है। कई पिटारे खोले जायेंगे और यह कदम राष्ट्रहित में नहीं है, जिसे एक न एक दिन किसी न किसी रूप में प्रतिक्षेप का सामना करना पड़ेगा।
हमने पिछले 70 वर्षों में जम्मू और कश्मीर के लिये हर तरह के समाधानों को आज़मा कर देखा है, जो बेअसर साबित हुए हैं। आपको नहीं लगता कि यही एक समाधान बचा था, जिसे अपनाना सरकार के लिये ज़रूरी था?
उन बैठकों में सिर्फ ऊपरी उपायों के अलावा क्या किया गया है? कोई भी ठोस काम नहीं किया गया। आप सभी के अधिकारों पर कब्ज़ा नहीं जमा सकते। भारत विविधताओं से भरा देश है और विचारों का मतभेद तो हमेशा रहेगा, भारतीय संघ में भी। इस कदम का प्रभाव इस क्षेत्र के बाहर भी पड़ेगा।
आम कश्मीरी इस कदम के बारे में क्या सोचता है?
हम कश्मीर की मुख्य राजनीति में रहे हैं, जिसका सामना दूसरी सोच, यानि कि अलगाववदी सोच से होता आया है। मौजूदा सरकार ने भारतीय मुख्यधारा राजनेताओं के अधिकारों पर भी कब्ज़ा जमा लिया है।
कश्मीरी अलगाववादी आज सही साबित हो गये हैं। कश्मीरी अलगाववादियों ने हमेशा दो देशों की सोच को बढ़ावा दिया है, और आज उनकी सोच को मज़बूती मिली है, कि हाँ, दो देशों वाली सोच सही थी।
मैं आपको पहले से तो नहीं बता सकता कि इसका परिणाम क्या होगा, लेकिन एक बात तो है, कि आज के मुख्य धारा राजनेता यह सोचने के लिये मजबूर हो गये हैं कि शायद दूसरा पक्ष ही सही था।
तो क्या भारतीय मुख्यधारा राजनेताओं के लिये अब कश्मीर में काम करना मुश्किल हो जायेगा, क्योंकि आपने हमेशा ही कश्मीर में भारत का समर्थन किया है?
बिल्कुल, उन्होंने हमारी जगह पर कब्ज़ा जमा लिया है और हमें दरकिनार कर दिया है। यह सोच का मतभेद नहीं, अहम् की लड़ाई है।
लेकिन भारतीय हमेशा सोचते आये हैं कि वे जम्मू-कश्मीर में घर क्यों नहीं ख़रीद सकते और यह भावना कहीं न कहीं सभी भारतीय लोगों के मन में है।
इसकी एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है। आप भावनाओं के आवेग में किसी बात पर कोई फ़ैसला नहीं सुना सकते। आपको इतिहास देखना चाहिये कि जम्मू-कश्मीर भारत में किस प्रकार शामिल हुआ है।
जब भारत को आज़ादी मिली थी, तब पूरा देश ब्रिटिश भारत के दायरे में था, जबकि जम्मू-कश्मीर स्वतंत्र था। देश के बाक़ी हिस्से के लिये प्रस्ताव ब्रिटिश भारत के अधीन पारित किया गया था। यह प्रांत 15 अगस्त, 1947 को भारत में शामिल नहीं हुआ था।
जम्मू-कश्मीर भारत का एकमात्र राज्य है, जो भारत में अपने स्वतंत्र निर्णय से शामिल हुआ है, उसे शामिल कराया नहीं गया है। यह राज्य प्रस्ताव के कारण शामिल हुआ था।
दूसरी ओर (पाक़िस्तान) से हमले होने के बाद विशेष परिस्थितियों के अधीन जम्मू-कश्मीर भारतीय गणराज्य में शामिल हुआ। जम्मू-कश्मीर कुछ विशेष परिस्थियों और शर्तों के साथ भारत में शामिल हुआ है।
और कानूनी तथा संवैधानिक रूप से, वास्तव में इसका विलय अभी तक नहीं हुआ है। धारा 370 जम्मू-कश्मीर को दी गयी एकमात्र गारंटी थी।
ये सभी चीज़ें राष्ट्रपति के आदेश से होती हैं, न कि संविधान के माध्यम से।
ऐसा अनुच्छेद 35 ए के बारे में कहा जा सकता है, और यह सिर्फ इस राष्ट्रपति आदेश के लिये लागू नहीं है। जम्मू-कश्मीर से जुड़े 14 अन्य राष्ट्रपति आदेश हैं, जिनमें से एक है सदर-ए-रियासत (राज्य प्रमुख, राज्यपाल) और प्रधानमंत्री की भूमिका को समाप्त करना।
इसका यह मतलब नहीं है कि वह आदेश भी लागू है। धारा 370 पर चर्चा के बाद इसे भारत के संविधान की धारा के रूप में शामिल किया गया था। 35ए उसके बाद में शामिल हुआ। और 35ए कहीं से अचानक नहीं आया। हमारा राज्य विषयी कानून 1927 में पारित किया गया था, और यह उसी आदेश का एक प्रतिरूप था।
अब लद्दाख को भी एक अलग केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा दे दिया गया है।
यह उस संरचना का हिस्सा है, जिसे भारतीय राजनीति का एक तबका हमेशा से बढ़ावा देता आया है। इसी से साबित होता है कि पूर्ण बहुमत हमेशा घातक होता है, और यही इस बार हुआ है।
क्या आप इसे स्पष्ट कर सकते हैं?
धारा 370 को ख़त्म करना संविधान पर हमला और संविधान की हत्या है। यह एक प्रलय है। यह अपने अहम् को हवा देने के लिये किया गया है। आप अपनी संतुष्टि के लिये अपने ही संविधान को कुचल रहे हैं। यह काम गणतांत्रिक रूप से नहीं किया जा रहा। यह भारतीय संविधान पर एक हमला है, क्योंकि धारा 370 जम्मू-कश्मीर को भारत से जोड़ने वाला एक पुल था।
भारत की जनता ने प्रधान मंत्री मोदी को दुबारा चुन कर उन्हें जनादेश दिया है। आप कैसे कह सकते हैं कि यह तानाशाही और ग़ैर-संवैधानिक है?
यह सच है, लेकिन हर काम गणतांत्रिक और संवैधानिक रूप से किया जाना चाहिये। आपको जनादेश मिलने का मतलब यह नहीं है कि आप हर व्यवस्था को कुचल देंगे। आपको देश की जनता ने संविधान की हत्या करने के लिये नहीं चुना है। इसलिये, मैं कहता हूं कि यह भारतीय गणतंत्र के इतिहास का एक काला दिन है।
धारा 370 के ख़त्म किये जाने के बाद ज़मीनी स्थिति में क्या बदलाव हो सकते हैं?
ज़मीन तो अब बची ही नहीं है। जम्मू और कश्मीर राज्य अब एक बड़ी जेल की तरह है। पिछले 10 दिन में लाखों भारतीय सशस्त्र सैनिकों को वहाँ तैनात कर दिया गया है। हर कोना अभी कब्ज़े में ले लिया गया है। राजनेताओं को उनके घर पर ही नज़रबंद कर दिया गया है। यही आज की स्थिति है और हर इंसान हैरत में है।
मैं आपसे कहता हूं कि जम्मू-कश्मीर में भारत का झंडा लहराने वालों को आज दरकिनार कर दिया गया है।
हम इस बात के पक्षधर थे कि भारतीय संविधान में लोगों की शिकायतों को सुनने और दूर करने की क्षमता है। अब हम क्या कहें?
हम भारतीय गणतंत्र और भारतीय संविधान का पक्ष लेते आये हैं। जबकि दूसरा पक्ष (अलगाववादी) भारतीय संविधान, गणतंत्र और राज्याधिकार पर सवाल उठाता आया है। धारा 370 को समाप्त करने के इस फ़ैसले से उनका मुद्दा अब सही साबित हो गया है।
वे हमेशा हमें ग़द्दार और भारत के एजेंट कहेंगे। ऐसा करके उन्होंने हमारे अधिकारों पर कब्ज़ा कर लिया है और हमें दरकिनार कर दिया है। अब हम जम्मू-कश्मीर के लोगों से भारतीय गणतंत्र और भारतीय संविधान के बारे में क्या कहेंगे?