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मिलिये आरे के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट जाने वाले वकालत के विद्यार्थी से

October 14, 2019 18:22 IST

'आरे में पेड़ काटना अगर ग़ैरकानूनी नहीं, तो अनैतिक ज़रूर था'

'हम सभी अन्य अर्ज़ीदारों के साथ मिलकर निर्माणकार्य (आरे में मेट्रो शेड का) रोकने की पूरी कोशिश करेंगे'

'इस सरकार द्वारा पेश की गयी विकास की पूरी तसवीर ही ग़लत है'

Mumbai-ites stage a protest demanding that the Mumbai Metro Rail Corp Ltd not cut trees at Aarey to build a Metro parking shed. Photograph: Prashant Waydande/Reuters 

फोटो: मुंबई-वासियों ने एक विरोध प्रदर्शन के माध्यम से मांग रखी कि मुंबई मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड आरे में मेट्रो पार्किंग शेड बनाने के लिये पेड़ न काटे। फोटोग्राफ: प्रशांत वायदांडे/रीयूटर्स

सोमवार को, भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने अगला आदेश आने तक मुंबई की आरे कॉलोनी में पेड़ काटने पर रोक लगा कर पर्यावरण प्रेमियों को थोड़ी राहत दी

यह आदेश तब आया जब अक्टूबर 6 को अदालत ने ख़ुद इस मुद्दे पर हरकत ली और एक वकालत के विद्यार्थी ऋषव रंजन द्वारा भारतीय मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को लिखी गयी चिठ्ठी को जनहित वाद के रूप में दर्ज किया। इस पत्र में आरे कॉलोनी में पेड़ों के काटे जाने पर रोक लगाने की मांग की गयी थी, जिसे मुंबई के हरित फेफड़े के रूप में जाना जाता है।

ऋषव रंजन ने एक विद्यार्थी दल की ओर से CJI को यह पत्र मुंबई के उच्च न्यायालय द्वारा आरे कॉलोनी को जंगल घोषित करने और मुंबई मेट्रो की लाइन 3 के लिये कार शेड बनाने के उद्देश्य से इस हरे-भरे क्षेत्र में 2,600 से भी ज़्यादा पेड़ काटने के मुंबई महानगरपालिका के फ़ैसले पर रोक लगाने से इनकार किये जाने के दो दिन बाद भेजा।

सैयद फ़िरदौस अशरफ़ / रिडिफ़.कॉम से बात करते हुए, दिल्ली के चौथे वर्ष के वकालत के छात्र ने कहा कि आरे का मुद्दा सिर्फ पेड़ों का नहीं, बल्कि पक्षियों तथा अन्य वन्यजीव एवं वनस्पतियों का भी है। "हर भौगोलिक क्षेत्र का अपना पर्यावरणीय महत्व होता है," उसने कहा।

क्या आप सर्वोच्च न्यायालय द्वारा महाराष्ट्र सरकार को दिये गये आरे में अब कोई भी पेड़ न काटने के आदेश से ख़ुश हैं?

हम बेहद ख़ुश हैं और हम इस राहत के लिये माननीय भारतीय सर्वोच्च न्यायालय के आभारी हैं।

महाराष्ट्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में कहा कि आरे में उनका काम पूरा हो चुका है और जितने पेड़ काटने की ज़रूरत थी, उतने काटे जा चुके हैं। तो अब इसमें आभार मानने की क्या बात है?

अदालत में सरकार ने कहा कि वे पहले से काटे जा चुके पेड़ों के अलावा और पेड़ अब नहीं काटेंगे। उन्होंने यह नहीं बताया है कि कितने पेड़ काटे जा चुके हैं और कितने अभी भी काटे जाने हैं।

सर्वोच्च न्यायालय में इस मामले की अगली सुनवाई अक्टूबर 21 को होगी। हमें अभी भी स्पष्ट जानकारी नहीं है कि यह संख्या (2000 से ज़्यादा) सरकार द्वारा पहले ही काटी जा चुकी है या नहीं। उन्होंने बस इतना कहा है कि वे और पेड़ नहीं काटेंगे।

लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का अब क्या मतलब है, जब सरकार पेड़ काटने का अपना काम कर चुकी है? क्या यह सरकार की जीत नहीं है?

हमें सरकारी वक्ता से इसकी जानकारी मिलेगी। उन्होंने कहा है कि वे पेड़ काट चुके हैं और काम हो चुका है। और उसका मतलब यह है कि उन्होंने पूरे 2,700 पेड़ काट लिये हैं, लेकिन सॉलिसिटर जनरल ऑफ़ इंडिया की ओर से अभी तक कोई बयान नहीं आया है, जिससे पता चले कि कितने पेड़ काटे गये हैं। इसलिये हम इस बारे में कुछ कह नहीं सकते।

तो इस समय हमें जानकारी नहीं है कि कितने पेड़ काटे जा चुके हैं और हमें यह जानकारी पाने के लिये अक्टूबर 21 तक रुकना होगा?

हम सभी अन्य अर्ज़ीदारों के साथ मिलकर निर्माणकार्य (आरे में मेट्रो शेड का) रोकने की पूरी कोशिश करेंगे। हमें अच्छे परिणाम मिलने की उम्मीद है।

Rishav Ranjan, a fourth year law student based in Delhi, wrote a letter to the Supreme Court demanding action against the felling of trees at Mumbai's Aarey Colony. In his letter, he requested the top court "to exercise its epistolary jurisdiction to protect Aarey without getting into technicalities as there was no time for preparation of a proper appeal petition and cover the scars of these young activists who are responsible citizens standing for serious environmental concerns". Photograph: Rishav Ranjan/Twitter

फोटो: ऋषव रंजन, दिल्ली के एक चौथे वर्ष के वकालत के विद्यार्थी ने सर्वोच्च न्यायालय को एक पत्र लिख कर मुंबई की आरे कॉलोनी में पेड़ काटे जाने पर रोक लगाने की मांग की। इस पत्र में उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय से "तकनीकी गहराई में गये बिना अपने पत्रात्मक अधिकार क्षेत्र का उपयोग करते हुए आरे को बचाने की मांग की, क्योंकि अपील की उचित याचिका तैयार करने और इन युवा प्रदर्शकों के घावों को ढँकने का समय नहीं बचा था, जो पर्यावरण की चिंता के साथ लड़ रहे ज़िम्मेदार नागरिक हैं।" फोटोग्राफ: Rishav Ranjan/Twitter

जब मुंबई उच्च न्यायालय पेड़ काटने जैसा आदेश देता है, तो क्या आपको इसे स्वीकार नहीं करना चाहिये?

हम न्यायालय के आदेश को स्वीकार करना चाहते हैं। न्यायालय ने ख़ुद कहा है कि अधिकार क्षेत्र की सीमाओं के कारण अदालत कुछ मुद्दों पर कदम नहीं उठा सकती। इसलिये मुंबई उच्च न्यायालय ने कहा कि कुछ मुद्दों पर कार्रवाई संभव नहीं है, और अर्ज़ीदारों को अपनी मांग सर्वोच्च न्यायालय के पास ले जानी चाहिये। सरकार को यह बात पता थी, लेकिन उन्हें अपना काम पूरा करने की जल्दी थी।

क्या आपको लगता है कि उच्च न्यायालय के आदेश के बाद आरे में पेड़ काटने का सरकार का फ़ैसला ग़ैरकानूनी था?

यह अनैतिक है। आरे में पेड़ काटना अगर ग़ैरकानूनी नहीं, तो अनैतिक ज़रूर था।

आप दिल्ली में रहते हैं। तो आप मुंबई के इस मामले से इतने प्रभावित क्यों हुए कि आपने इस मुद्दे को सर्वोच्च न्यायालय तक ले जाने का फ़ैसला किया?

हम वकालत के छात्र हैं और मुंबई में हमारे दोस्तों से जुड़े हुए हैं। हम मुंबई की महानगरपालिका द्वारा उठाये गये कदमों के ख़िलाफ़ लड़ रहे हैं, जो आरे में पेड़ काट रही है।

जब शुक्रवार को मुंबई में मेरे दोस्तों को हवालात में डाल दिया गया, तब उन्होंने हमसे सवोच्च न्यायालय में रोक लगाने की अर्ज़ी देने की मांग की। तब हमें पता चला कि मुंबई के उच्च न्यायालय में याचिका दायर की गयी है और उच्च न्यायालय द्वारा याचिका को खारिज किये जाने पर हमने राहत के लिये भारत के मुख्य न्यायाधीश से संपर्क किया।

मुंबई मेट्रो चीफ़, अश्विनी भिडे ने शनिवार को आरे में पेड़ों की कटाई का विरोध करने वालों  की आलोचना करते हुए कहा कि पेड़ काटने की अनुमति और वास्तविक कटाई के बीच 15-दिनों की अनिवार्य सूचना अवधि का पालन न किये जाने की झूठी बात को फैलाया जा रहा है। क्या आप इसपर टिप्पणी करना चाहेंगे?

पेड़ों की कटाई शुरू होने पर उस जगह कोई भी वृक्ष अधिकारी मौजूद नहीं था। मेरे दोस्त जब आरे गये थे, तब उन्हें वहाँ कोई वृक्ष अधिकारी नहीं दिखा। उन्होंने वृक्ष अधिकारी की अनुपस्थिति में ग़ैरकानूनी तरीके से इस काम को अंजाम दिया है।

Since Friday, several protests have taken place across the city of Mumbai demanding that the trees not be felled at Aarey. Photograph: ANI Photo

फोटो: शुक्रवार से, पूरे शहर में कई विरोध प्रदर्शनों द्वारा आरे में पेड़ न काटे जाने की मांग गयी है। फोटोग्राफ: एएनआइ फोटो

मेट्रो के समर्थकों का कहना है कि सुर्खियाँ बटोरने के लिये NGO झूठ फैला रहे हैं। उनपर विकास के ख़िलाफ़ होने का आरोप लगाया जा रहा है।

हमें विकास के प्रारूप पर दुबारा विचार करना चाहिये; हमें विकास की तसवीर को दुबारा देखना चाहिये। विकास किस कीमत पर किया जा रहा है, यही हमारा सवाल होना चाहिये।

जन-जीवन की कीमत पर विकास, पेड़ों को काट कर विकास?

इस सरकार द्वारा पेश की गयी विकास की पूरी तसवीर ही ग़लत है। इस पर दुबारा विचार करने की ज़रूरत है। अब समय आ गया है, और हम इसे और सहन नहीं करेंगे।

आप इस तथ्य के बारे में क्या कहना चाहेंगे कि सरकार ने आरे में 2000 से ज़्यादा पेड़ काटने के बदले में मुंबई में 24,000 लगाये भी हैं?

हर भौगोलिक क्षेत्र का अपना पर्यावरणीय महत्व होता है। मुंबई के हरित फेफड़े के रूप में परिचित आरे को शहर के किसी दूसरे हिस्से में लगाने और इसके बिल्कुल वैसे ही होने की उम्मीद नहीं की जा सकती।

मुद्दा सिर्फ पेड़ों का नहीं है। बात पक्षियों, प्राणियों, पौधों और सभी अन्य चीज़ों की भी है। इसका पर्यावरण पर अलग प्रभाव है। पूरे राज्य में पेड़-पौधे लगाकर इसकी भरपाई नहीं की जा सकती। हर भौगोलिक क्षेत्र का पर्यावरण पर अपना प्रभाव होता है।

आप आरे को जंगल कह रहे हैं, लेकिन कई लोगों का मानना है कि आरे कोई जंगल नहीं है।

प्रकृति यह नहीं सोचती कि कोई क्षेत्र जंगल है या नहीं। प्रकृति इस बात पर निर्भर नहीं है कि किसी जगह को सरकार से जंगल होने का प्रमाणपत्र मिला है या नहीं। हम तकनीकी गहराइयों में उतर सकते हैं, लेकिन प्रकृति तो हम सभी को सज़ा देगी, हर एक इंसान को।

क्या आप पर्यावरण की सुरक्षा के लिये किसी संगठन से जुड़े हुए हैं?

हमारा कोई संगठन नहीं है। मैं बस वकालत का छात्र हूं और मेरे जूनियर्स के साथ मिलकर मैंने यह याचिका दाखिल की है। 

सैयद फ़िरदौस अशरफ़