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जलवा अनिल कपूर और माधुरी के रोमांस का

Last updated on: February 20, 2019 14:51 IST

अनिल कपूर और माधुरी दीक्षित तैयार हैं बड़े पर्दे पर टोटलधमाल  करने के लिये!

तसवीर: अनिल कपूर/इंस्टाग्राम के सौजन्य से

अनिल कपूर को लगता है कि उन्होंने अब तक जितनी भी अभिनेत्रियों के साथ काम किया है, उनमें से उनकी सबसे अच्छी जोड़ी माधुरी दीक्षित के साथ बनती है।

और हम भी इस बात को मानते हैं।

जब अनिल कपूर का ‘झकास’ अंदाज़ माधुरी दीक्षित की करिश्माई अदाओं से मिलता है, तो सिल्वर स्क्रीन पर चार चांद लग जाते हैं।

हालांकि उनकी पहली मूवी ज़्यादा सफल नहीं रही, लेकिन कुछ ही समय में दोनों का ताल-मेल जादू बिखेरने लगा और यह जोड़ी बॉलीवुड की सबसे लोकप्रिय जोड़ियों में से एक बन गयी।

लगभग दो दशक बाद, यह धमाकेदार जोड़ी अपनी केमिस्ट्री का जलवा फिर से दिखाने आ रही है इंद्र कुमार के टोटलधमाल में।

तब तक, सुकन्या वर्मा लेकर आ रही हैं उन दोनों की साथ में की गयी ढेर सारी फिल्मों के रीकैप।

हिफ़ाज़त (1987)

1980 के दशक की इस फिल्म में अनिल कपूर की मर्दानगी और माधुरी के घमंड के बीच का टकराव एक बार फिर गुस्सैल लड़की को जीतने की बॉलीवुड की उसी मनपसंद  कहानी को दुहराता है। और हममें से शायद ही कोई इस कहानी को भूल पाया होगा।  

इस फिल्म को सबसे ज़्यादा याद किया जाता है उस हिस्से के लिये, जिसमें अनिल-माधुरी की जोड़ी भांग खाकर हवा में लटकते एक बड़े से बटाटावडा पर नाचती हुई दिखाई देती है।

तेजाब (1988)

एन चंद्रा की इस पावरफुल ड्रामा हिट को स्क्रीन पर आये अब एक दो तीन दशक बीत चुके हैं।

लेकिन दर्शकों पर इसका असर आज भी दिखाई देता है।

यह कहानी कॉलेज के कैम्पस में अनिल और माधुरी की इश्क़बाज़ी, प्यार के ज़ोरदार इज़हार, दिल तोड़ने वाली जुदाई और दिल को छूने वाले मिलाप के इर्द-गिर्द घूमती है। इसी इमोशनल ग्राफ के साथ फिल्मी दुनिया की सच्ची जोड़ी के रूप में उनकी छवि अमर हो गयी।

रामलखन (1989)

सुभाष घई की इस शानदार मल्टीस्टारर में माधुरी को अनिल के अल्हड़ कमीनेपन के साथ बाँहों में बाँहें डाले चलने वाली गाँव-की-गोरी दिखाया गया है, जिनके मज़ेदार गाने और डांस कहानी में जान डाल देते हैं।

परिंदा (1989)

दो भाइयों की ज़िंदग़ी के इर्द-गिर्द घूमने वाले विधु विनोद चोपड़ा के इस गंभीर और दिल दहलाने वाले अंडरवर्ल्ड ड्रामा में अनिल-माधुरी की धधकती केमिस्ट्री सच्चे और स्पष्ट रूप में उभर कर आयी है।

कहानी के भावनात्मक पड़ावों पर इस बात को महसूस किया जा सकता है।

और इसके आखिर में प्रसिद्ध लव-मेकिंग सिक्वेंस ने स्क्रीन पर जैसे आग ही लगा दी है।

किशनकन्हैया (1990)

राम और श्याम से लेकर जुड़वाँ 2 तक, बचपन के बिछड़े जुड़वाँ भाइयों का फॉर्मुला कभी फेल नहीं हुआ है।

निर्देशक राकेश रोशन की इस मस्ती भरी और भड़कीली कहानी में अनिल कपूर ने राज कपूर से लेकर देव आनंद तक हर किरदार का अंदाज़ दिखा कर सभी का दिल जीत लिया है।

इन्हीं सब के बीच बॉलीवुड के इस फैनबॉय को माधुरी में अपना सच्चा साथी मिलता है और किशन कन्हैया को उसकी पहचान मिल जाती है।

जीवन एक संघर्ष (1990)

राहुल रवैल की यह चटपटी मसाला फिल्म बिना कोई पहचान बनाये ग़ायब हो गयी।

फिर भी, इस जोड़ी के फैन्स को मुंबई से ऐम्स्टर्डैम तक भटकती ब्यूटी क्वीन और बदमाश की जोड़ी का मस्ती भरा अंदाज़ और हास-परिहास काफी गुदगुदाता है।

जमाई राजा (1990)

तेलुगू सुपरहिट अट्टकू यामुडू अम्मायिकी मोगुडू की यह रीमेक काफी हद तक एक ढीठ लड़के और उसकी गुस्सैल सास के बीच के मज़ेदार टकराव पर आधारित है।

अनिल कपूर और हेमा मालिनी कहानी को तेज़ी से आगे बढ़ाते हैं, जबकि दूसरी ओर माधुरी अपने अनोखे अंदाज़ में कहानी में ग्लैमर घोलती हैं।

प्रतिकार (1991)

मजबूरी के कारण पेट पालने के लिये पति-पत्नी होने का नाटक करना और बाद में सचमुच प्यार में पड़ जाना बॉलीवुड की एक पुरानी घिसी-पिटी कहानी है। और प्रतिकार की कमज़ोर पटकथा इसमें जान नहीं डाल पाती।

डांडिया फंक्शन्स या कॉलेज के ऐन्युअल डे पर बप्पीदा की धुनों पर इस जोड़ी को झूमते देखना इस फिल्म का एकमात्र आकर्षण है।

बेटा (1992)

इंद्र कुमार के इस धमाकेदार मेलोड्रामा में अनिल कपूर एक भोले-भाले सौतेले बेटे के किरदार में दिखाई देते हैं, जो अपनी शातिर माँ अरुणा ईरानी के इशारों पर नाचता है, कि तभी माधुरी उनकी कहानी में आकर बेटा के दिल में धकधक जगा देती हैं।

माधुरी का किरदार इतना तगड़ा था, कि कुछ लोग मानते हैं कि इस ब्लॉकबस्टर का नाम बेटा नहीं, बेटी होना चाहिये था।

तीनों ने ही अपने-अपने किरदार के लिये फिल्मफेयर ट्रॉफीज़ जीतीं, जिसमें से अनिल कपूर की ट्रॉफी काफी विवादों में रही।

खेल (1992)

अनिल-माधुरी का लोगों को ठगने का खेल ज़ोर-शोर से चलता है और दोनों एक अमीर विधवा औरत को लूटने के बड़े घोटाले में हाथ डालते हैं।

पूरी कोशिशों और इडली डू जैसे मज़ेदार चार्टबस्टर्स के बावजूद राकेश रोशन का यह डर्टी रॉटन स्काउन्ड्रल्स का रिप-ऑफ़ ज़्यादा पैसे कमाने में असफल रहा।

ज़िंदग़ी एक जुआ (1992)

प्रकाश मेहरा की स्कारफेस से प्रेरित यह कमज़ोर कहानी औसत हिंदी फिल्म दर्शक को काफी नीरस लगी।

लेकिन फिल्म की गहराई में उतरें तो अपनी मर्ज़ी के बिना अपराध की दुनिया में उतरे अनिल कपूर, माधुरी दीक्षित की दर्दनाक ड्रग्स की लत और दोनों की बॉलीवुड की सबसे धधकती जोड़ी बने रहने की चाह में कुछ तो बात ज़रूर है।

राजकुमार (1996)

पंकज पराशर की इस बेस्वाद म्यूज़िकल फैन्टसी में अनिल कपूर और माधुरी दीक्षित ने देसी रॉबिन हुड और उसकी ख़ूबसूरत मल्लिका के किरदारों में कॉस्ट्यूम-कॉस्ट्यूम खेलने का पूरा मज़ा लिया है।

दुःख की बात है कि फिल्म बेहद कमज़ोर और सुस्त है और लोगों को हँसाने में पूरी तरह नाकाम रही है।

पुकार (2000)

राजकुमार संतोषी की काफी हद तक नीरस पुकार में इस जोड़ी ने अपने ताल-मेल को हीरो-हीरोइन वाले पुराने अंदाज़ से कहीं आगे बढ़कर परखा है।

जब माधुरी अपनी ग़लत इच्छाओं के आगे घुटने टेक देती है, तो अनिल के विश्वास की सबसे बड़ी परीक्षा शुरू होती है, और यहीं इस जोड़ी के बीच एक भावनात्मक लगाव दिखाई देता है, जो इतनी सारी फिल्मों के बाद भी अनोखा लगता है।

लज्जा (2001)

हालांकि इसमें दोनों ने साथ में एक भी सीन नहीं किया है, लेकिन फिर भी अनिल और माधुरी, दोनों की मौजूदगी, हुनर और स्टारडम पुरुष-प्रधानता के ख़िलाफ़ उठी सच्ची आवाज़ों के रूप में बढ़-चढ़ कर बोले हैं और राजकुमार संतोषी की इस नारीवादी फिल्म की शोभा बढ़ाई है।

सुकन्या वर्मा