से रा नरसिम्हा रेड्डी एक बेहद सजीव चित्रण है, जिसे थियेटर में देखने का अनुभव ज़रूर लेना चाहिये, करण संजय शाह ने महसूस किया।
ऐतिहासिक कहानियाँ, ख़ास तौर पर भारत की आज़ादी से जुड़ी लड़ाइयाँ हमेशा से दर्शकों को आकर्षित करती आई हैं।
लगान, द लेजेंड ऑफ़ भगत सिंह, गांधी हो या फिर मणिकर्णिका: द क्वीन ऑफ़ झाँसी, हम भारत की आज़ादी की लड़ाई से जुड़े महत्वपूर्ण लोगों की कहानियाँ स्क्रीन पर देखते आये हैं।
लेकिन से रा नरसिम्हा रेड्डी में आज़ादी की लड़ाई का एक ऐसा हिस्सा दिखाया गया है, जिसके बारे में शायद आपने कभी न सुना हो!
से रा नरसिम्हा रेड्डी अन्य सभी स्वतंत्रता सेनानियों से पहले के दौर से हैं, और यह मूवी उनका और उनकी बहादुरी का परिचय देती है और दिखाती है कि कैसे उन्होंने देश को अपनी आज़ादी की लड़ाई लड़ने के लिये प्रेरित किया।
जी हाँ, जी हाँ उन्होंने ही रानी लक्ष्मी बाई जैसे लोगों को ब्रिटिश सत्ता के ख़िलाफ़ लड़ने के लिये प्रेरित किया था।
से रा नरसिम्हा रेड्डी में दक्षिण भारत की एक अनकही कहानी दिखाई गयी है, जिसमें बताया गया है कि कैसे दक्षिण भारत ने ब्रिटिश राज से आज़ादी की मांग शुरू की थी।
कैसे जन्म के समय ही अपनी मौत को मात देने वाला एक बहादुर बच्चा लोगों का नेता बना।
अपने गुरू गोसाईं वेकन्ना (अमिताभ बच्चन) की बतायी राह पर चलते हुए, से रा नरसिम्हा रेड्डी (चिरंजीवी) एक आदर्शवादी, उदार और सभ्य इंसान बनते हैं।
मूवी में उनकी प्रेम कहानी भी दिखाई गयी है।
लेखन और सजीव किरदारों के साथ-साथ आज़ादी के संघर्ष का चित्रण शानदार है।
डायरेक्टर सुरेंदर रेड्डी और उनकी टीम ने मूवी को नाटकीय बनाने के लिये कई बदलाव किये हैं, लेकिन इसकी भव्यता आपका दिल जीत लेगी।
डायलॉग्स शानदार हैं, ख़ास तौर पर चिरंजीवी की कही गयी बातें। उनके कुछ शब्द और दृश्य आपके भीतर देशभक्ति की लौ जला देते हैं।
कहानी के ट्विस्ट आपको चौंका देंगे।
ऐक्शन के दृश्य, युद्ध और भावनात्मक पल क़ाबिल-ए-तारीफ़ हैं।
चिरंजीवी, सुदीप (अवुकू राजू के किरदार में) और विजय सेतुपति (राजा पंडी के किरदार में) के ऐक्शन के दृश्य और तमन्ना (लक्ष्मी के किरदार में) के डांस के दृश्य आपका दिल जीत लेते हैं।
सेटिंग और बारीकियों पर काफ़ी ध्यान दिया गया है। लाइटिंग और बैकग्राउंड म्यूज़िक कहानी की शोभा बढ़ाते हैं।
फिल्म में बेहतरीन कलाकारों को लिया गया है और हर किसी का अभिनय लाजवाब है।
लेकिन पूरी फिल्म चिरंजीवी के कंधों पर टिकी है, जिनका अभिनय ज़बर्दस्त है!
उन्होंने पंचलाइन्स के साथ-साथ ऐक्शन सीक्वेंसेज़ को भी बख़ूबी पेश किया है।
अमिताभ बच्चन का रोल छोटा सा है, लेकिन अहम् है। उनके डायलॉग्स असर छोड़ते हैं और उन्होंने बख़ूबी अपना काम किया है।
सुदीप और विजय सेतुपति के किरदारों में दम है, लेकिन चिरंजीवी के साथ उनके और दृश्य देखने की उम्मीद थी।
तमन्ना और नयनतारा की भूमिकाऍं छोटी-छोटी हैं, लेकिन उन्होंने अपनी चमक बिखेरी है और बेहद ख़ूबसूरत लगती हैं।
बेहद सजीव पेशकश आपका मन मोह लेगी।
कहानी अंत तक आपको बांधे रखती है और आपको बहुत कुछ सिखाती है।
इसकी प्रेरणादायक आज़ादी की लड़ाई आपके दिल में तो उतरती है, लेकिन इस कहानी में कुछ ख़ामियाँ भी हैं।
दो घंटे और 50 मिनट इस फिल्म के लिये काफ़ी ज़्यादा हैं। स्लो-मो शॉट्स बहुत ज़्यादा दिखाये गये हैं।
कहानी कई बार खिंची हुई सी लगती है और इसमें से कम से कम 30 मिनट काटे जा सकते थे।
स्क्रीनप्ले भी बेहतर हो सकता था, क्योंकि कुछ दृश्य ज़्यादा असर नहीं डाल पाते।
कुछ सीन्स बाहुबली सीरीज़, 1981 की क्रांति और मणिकर्णिका: द क्वीन ऑफ़ झाँसी से काफ़ी ज़्यादा प्रेरित लगते हैं।
एक गाने की धुन केदारनाथ के नमो नमो से काफ़ी मिलती-जुलती है, जिसमें कोई हैरत की बात नहीं है, क्योंकि दोनों ही फिल्मों के म्यूज़िक डायरेक्टर अमित त्रिवेदी हैं।
क्लाइमैक्स हालांकि दमदार और क़ाबिल-ए-तारीफ है, लेकिन यह कुछ हद तक मूर्खतापूर्ण और बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया गया भी लगता है।
फिर भी, से रा नरसिम्हा रेड्डी एक अच्छी फिल्म है।
यह एक बेहद सजीव चित्रण है, जिसे थियेटर में देखने का अनुभव ज़रूर लेना चाहिये।