Rediff.com« Back to articlePrint this article

रितेश देशमुख को किस बात पर हँसी आती है !

Last updated on: February 22, 2019 10:05 IST

'कई बार ऐसा हुआ है कि ये सभी प्यारी - प्यारी आँटियाँ मेरे पास आकर कहती हैं, 'बेटा, तुम जब स्क्रीन पर आते हो, तो तुम्हारे डायलॉग बोलने से पहली ही हमें हँसी आ जाती है।'

फोटो: रितेश देशमुख अपने बेटे राहिल के साथ। फोटोग्राफ: रितेश देशमुख/इंस्टाग्राम के सौजन्य से।

रितेश देशमुख इंटरव्यू के दौरान भी उतने ही मज़ेदार लगते हैं, जितने फिल्मों में।

इंद्र कुमार की मल्टी-स्टारर टोटल धमाल में जुड़ने वाले अभिनेता ने कहा कि उन्होंने मूवी सिर्फ माधुरी दीक्षित की वजह से साइन की।

डायरेक्टर के साथ भी उनके बहुत अच्छे संबंध हैं, जिन्होंने उन्हें 2003 में उनके डेब्यू के बाद उनकी पहली कॉमेडी, मस्ती दी थी।

 

रितेश ने Rediff.comके संवाददाता मोहनीश सिंह को बताया कि, "अगर लोगों को लगता है कि मैं अच्छी कॉमेडी करता हूं और वो मुझे अपनी कॉमेडी फिल्मों में लेना चाहते हैं, तो इसका पूरा श्रेय इंद्र कुमार को जाता है।"

आप माधुरी दीक्षित के बहुत बड़े फैन हैं। क्या आप उनके साथ काम करते समय नर्वस थे ?

हाँ! जब इंद्र कुमार फिल्म के बारे में बात करने के लिये मुझसे मिले, तो मैंने उनसे स्क्रिप्ट मांगी।

उन्होंने बताया कि माधुरी भी इस फिल्म में है।

तो मैंने कहाँ, 'आइ एम ऑन'। (हँसते हुए)

मुझे याद है, 2008 में, हम अमितजी, अभिषेक, ऐश्वर्या और प्रीति के साथ अनफॉर्गेटबल नामक एक वर्ल्ड टूर कर रहे थे।

माधुरीजी इस यात्रा के अमेरिकन पड़ाव पर हमसे जुड़ी थीं; उस समय वे अमरीका में थीं।

बस उनकी मौजूदगी और उन्हें डांस करते देखना मेरे लिये बहुत बड़ी बात थी।

उनके और मि. अनिल कपूर के साथ इंद्र कुमार के डायरेक्शन में काम करने से ज़्यादा बड़ा सौभाग्य और क्या हो सकता है?

फोटो: माधुरी और रितेश के साथ अनिल कपूर। फोटोग्राफ: रितेश देशमुख/इंस्टाग्राम के सौजन्य से।

क्या इंद्र कुमार ने आपके करियर को तेज़ी दी है, क्योंकि मस्ती के बाद ही लोग आपको और आपकी कॉमिक टाइमिंग को जानने लगे है?

मैं हमेशा से ही उनकी दिल, बेटा, राजा और इश्क जैसी फिल्मों का फैन था।

जब हमने मस्ती में साथ काम किया तब मैं सिर्फ एक न्यूकमर था, जबकि वो एक बड़े डायरेक्टर थे।

मस्ती मेरी पहली बड़ी कमर्शियल फिल्म थी।

अगर लोगों को मेरी कॉमेडी ठीक-ठाक लगती है और वो मुझे कॉमेडी फिल्मों में लेना चाहते हैं, तो इसका पूरा श्रेय उन्हें ही को जाता है।

तो मुझे मेरी आज की पहचान देने में उनका बहुत बड़ा योगदान रहा है।

उन्होंने मुझे कॉमिक दुनिया में आगे उड़ने के लिये पंख दिये।

यह उनके साथ मेरी पाँचवी फिल्म है। ऐक्टर-डायरेक्टर संबंधों की बात करें तो आज हम बेहद करीबी दोस्त हैं।

जब हम साथ में कोई फिल्म नहीं भी कर रहे होते हैं, तब भी हम सप्ताह में कम से कम एक बार एक-दूसरे से बात ज़रूर करते हैं।

हम पूरी हँसी-ठिठोली करते हैं।

मैं जैसे अपने क्लासमेट्स से बात करता हूं, वैसे ही उनसे बात करता हूं। हमारी दोस्ती इतनी गहरी है।

फोटो: टोटल धमाल के पैसा ये पैसा गाने में रितेश। फोटोग्राफ: रितेश देशमुख/इंस्टाग्राम के सौजन्य से।

क्या आप उनके द्वारा आपको दी गयी *कोई भी* फिल्म कर लेंगे?

देखिये, हमारा रिश्ता ऐसा है कि उन्हें पता होता है कि मैं किन फिल्मों के लिये हाँ करूंगा और किनके लिये ना। उनकी फिल्मों के लिये मना करने पर वो बुरा नहीं मानते।

कई बार ऐसा भी हुआ है कि उन्होंने मुझे फिल्म ऑफ़र की, लेकिन बहुत ज़्यादा व्यस्त होने के कारण मैं ले नहीं पाया।

लेकिन मस्ती हो या धमाल, हम जब भी साथ काम करते हैं, हर सीन को बेहतरीन तरीके से करने की कोशिश करते हैं।

यह एक डायरेक्टर और ऐक्टर के बीच का सबसे मज़बूत रिश्ता है - किसी चीज़ के अच्छे या बुरे होने को लेकर एक-दूसरे के साथ डिबेट करना, चाहे वह मज़ेदार हो या नहीं।

अंत में, हमें समझना पड़ता है कि ऐक्टर का तरीका अलग होता है और डायरेक्टर का अलग। अगर फिल्म को चलाना है, तो डायरेक्टर के तरीके से चलना ज़रूरी है।

हर ऐक्टर को यह बात समझनी चाहिये। आप सुझाव दे सकते हैं, लेकिन अंतिम फैसला डायरेक्टर का होता है।

फोटो: इंद्र कुमार के साथ रितेश की एक पुरानी तसवीर। फोटोग्राफ: रितेश देशमुख/इंस्टाग्राम के सौजन्य से।

काफी लोग ऐसा मानते हैं कि रितेश देशमुख की मूवी है तो मज़ेदार और हँसाने वाली होगी।

सबसे पहले तो, थैंक यू!

ऐसा मेरे साथ कई बार हुआ है, ये सभी प्यारी-प्यारी आँटियाँ मेरे पास आकर कहती हैं, 'बेटा जब भी तुम स्क्रीन पर आते हो, तुम्हारे डायलॉग से पहले ही हम हँसने लगते हैं।'

मुझे लगा कि शायद मैं अजीब दिखता हूं, या मेरे चेहरे में कोई गड़बड़ है और इसलिये ही उन्हें हँसी आयी होगी।

फिर मेरी समझ में आया कि उन्हें मेरा काम मज़ेदार लगा।

अच्छा लगता है जब लोग आकर आपके काम की तारीफ़ करते हैं।

लेकिन गंभीर किरदार निभाने पर मेरे दिमाग में हमेशा यह बात रहती है, कि ऑडियन्स को मेरा कॉमिक अंदाज़ देखने की आदत है।

मुझे मेरे संजीदा रोल पर उनकी प्रतिक्रिया को लेकर डर लगा रहता है। कई बार यह मुश्किल हो जाता है।

लेकिन डायरेक्टर्स और राइटर्स इसमें आपकी मदद करते हैं।

फोटो: रितेश - पत्नी जेनेलिया, बेटा और माँ वैशाली - रितेश के स्वर्गीय राजनीतिज्ञ पिता विलासराव देशमुख की तसवीर के साथ। फोटोग्राफ: रितेश देशमुख/इंस्टाग्राम के सौजन्य से।

आप किस तरह की कॉमेडी पसंद करते हैं?

जब मैं अकेला होता हूं, तो मैं अपनी शादी की वीडियो देख लेता हूं! (हँसते हुए)

मैं नेटफ़्लिक्स पर कॉमेडी देखने वालों में से नहीं हूं।

मुझे सिचुएशनल कॉमेडी, रॉमकॉम्स, पोकर फेस कॉमेडी पसंद है, जिसमें कही जाने वाली बात पर पूरा ध्यान होता है और उसके पीछे छुपा भाव और भी मज़ेदार होता है।

फोटो: रितेश और जेनेलिया, उनकी साथ की गयी पहली फिल्म, तुझे मेरी कसम  में। फोटोग्राफ: रितेश देशमुख/इंस्टाग्राम के सौजन्य से।

क्या आपको लगता है कि अगर कोई ऐक्टर लंबे समय तक एक ही तरह के रोल करता रहे, तो उसके लिये ऑडियन्स के सामने यह साबित करना मुश्किल हो जाता है कि वह अब इस ढाँचे से बाहर निकल कर कुछ अलग भी कर सकता है?

जब 2003 में मैंने (अभिनय की) शुरुआत की थी, तो बड़े प्रॉडक्शन हाउस सिर्फ स्टार्स में दिलचस्पी लेते थे, न्यूकमर्स में नहीं। जब तक मैंने अपनी राह बनाई तब तक चीज़ें फिर बदल गयीं।

फिर एक दौर आया जब बड़े प्रॉडक्शन हाउसेज़ न्यूकमर्स में दिलचस्पी दिखाने लगे और जाने-माने स्टार्स में उनकी रुचि कम हो गयी, यह बहुत ही अच्छी बात थी, क्योंकि नये हुनर वाले न्यूकमर्स को मौका मिलने लगा।

मेरी पहली रोमैंटिक फिल्म तुझे मेरी कसम के बाद मैंने मस्ती और क्या कूल हैं हम एक साथ की।

इनके चल जाने पर, मुझे दो और कॉमेडी फिल्म्स मिलीं, ब्लफ़मास्टर! और मालामाल वीकली

इसके बाद मैंने फाइट क्लब: मेम्बर्स ओनली की, जो चल नहीं पायी। ऐसी ही कुछ और गंभीर फिल्में और रॉमकॉम्स भी मैंने की, जो नाकाम रहीं।

लेकिन मैंने हमेशा पूरी लगन से काम किया है।

फोटो: एक विलेन में रितेश

क्या आपको एक विलेन जैसी थ्रिलर में काम करना कॉमेडी से ज़्यादा चुनौती भरा लगा?

कॉमेडी में एक रिदम होता है। आप वर्तमान में रहते हैं और उस पल को जीते हैं।

जब बात हो एक विलेन जैसी फिल्मों की, तो आपको सोचना पड़ता है कि यह किरदार कहाँ से आ रहा है और क्या हो रहा है।

अभिनय में आपको कई पहलुओं को ध्यान में रखकर सोचना पड़ता है।

दोनों ही अपनी तरह की चुनौतियाँ हैं और मैंने दोनों का मज़ा लिया है।

क्या आपको लगता है कि हॉलीवुड के मुकाबले बॉलीवुड में कॉमिक ऐक्टर्स को कम सम्मान मिलता है?

मैं नहीं मानता।

अगर ऐसा होता, तो हम कॉमेडी फिल्म्स नहीं कर रहे होते।

सबसे पहली बात यह है कि हम लोगों का मनोरंजन कर रहे हैं - यही बात सबसे ज़्यादा मायने रखती है।

हम अपना घर चलाने के लिये फिल्में करते हैं, और इससे अच्छी बात क्या हो सकती है?

अगर कोई फिल्म मज़ेदार हो और चल जाये, तो बहुत अच्छा लगता है। धमाल और गोलमाल बहुत बड़े फ्रैंचाइज़ेज़ हैं।

फोटो: लय भारी में रितेश

आपकी मराठी में की गई फिल्मों पर आते हैं, आप अपनी 2014 में बनी हिट लय भारी में माउली जैसे तगड़े किरदार को वापस लाये। लेकिन माउली लोगों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा।

मुझे नहीं लगता कि माउली, लय भारी के आगे का हिस्सा है।

लय भारी संयोग से हुई एक फिल्म थी, और संभवतः माउली को उस तरह की तारीफें नहीं मिलीं।

इसमें कोई दुःख की बात नहीं है, हम हर बार एक ही परिणाम की उम्मीद नहीं कर सकते।

आप अभी कौन सी मराठी फिल्म प्रोड्यूस कर रहे हैं?

हम शिवाजी की एक जीवनी को प्रोड्यूस कर रहे हैं।

यह विषय ही इतना ख़ास है कि इसपर फिल्म बननी ही चाहिये।

यह मेरे प्रॉडक्शन हाउस की अब तक की सबसे बड़ी फिल्म होगी।

उम्मीद है कि हम जल्द ही और भी फिल्मों पर काम शुरू करेंगे।

पिछले कुछ वर्षों में मराठी सिनेमा ने नयी ऊंचाइयों को छुआ है। आज, प्रिंयंका चोपड़ा, अक्षय कुमार और अजय देवगन जैसे बॉलीवुड के कई दिग्गज मराठी फिल्में प्रोड्यूस कर रहे हैं।

जब प्रियंका चोपड़ा, माधुरी दीक्षित और अमिताभ बच्चन जैसे बड़े नाम मराठी फिल्मों में अपना हाथ आज़माते हैं, तो ज़्यादा दर्शक फिल्म की ओर आकर्षित होते हैं, जो कि बहुत ही अच्छी बात है।

जब आप इंडस्ट्री में अपनी पहचान बना लेते हैं और प्रसिद्ध हो जाते हैं, तो दर्शक और ऐक्टर्स के लिये आप एक मिसाल बन जाते हैं।

प्रियंका चोपड़ा की वेंटिलेटर बहुत ही शानदार थी और इसमें उन्होंने खुद को निर्माता के रूप में परखा। यह अद्भुत हैं। लेकिन बात सिर्फ उनके नाम की नहीं है, यहाँ पर बात उनके द्वारा बनाई जा रही चीज़ की भी है।

मैंने भी पाँच फिल्मों को प्रोड्यूस किया है और इसमें मेहनत कर रहा हूं।

मराठी सिनेमा के पास हिंदी सिनेमा जैसे स्टूडियोज़ नहीं हैं। सोनी पिक्चर्स और फॉक्स स्टार स्टूडियोज़ जैसे स्टूडियो मिल जायें, तो हम और भी बड़ी मराठी फिल्में बनायेंगे।

आज, मराठी फिल्में गैर - मराठी दर्शक भी देखते हैं।

यह मराठी फिल्म इंडस्ट्री के हर कलाकार के लिये एक बड़ी सफलता है।

मुंबई एक महानगर है, जहाँ 30 से 35 प्रतिशत लोग मराठी बोलते हैं, बाकी लोग नहीं।

यह एक बहुभाषी शहर है, इसलिये यहाँ पर पंजाबी, तमिल, तेलुगू और कन्नड़ फिल्में भी चल जाती हैं, जो कि बहुत ही अच्छी बात है।

सचमुच, यह काफी अच्छा लगता है।

Mohnish Singh