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'मैंने उन्हें कभी सनी देओल के रूप में नहीं जाना है; वो हमेशा ही मेरे पापा रहे हैं'

September 24, 2019 12:07 IST

'फिल्म के डायरेक्टर और प्रोड्यूसर मेरे डैड हैं, इसलिये घर का माहौल काफी शांत, घबराहट, रोमांच से भरा हुआ है, और सच कहूं तो मैं चाहता हूं कि जल्द से जल्द यह काम पूरा हो जाये।'

'ताकि मैं आराम कर सकूं और ज़िंदग़ी के नये दौर में कदम रख सकूं।'

Karan Deol/Instagram

फोटोग्राफ: Karan Deol/Instagram के सौजन्य से

अपने पिता सनी देओल से अलग, करण देओल शर्मीले नहीं हैं।

वह आत्मविश्वास से भरे हुए हैं और उन्हें बातें करना पसंद है।

वह पल पल दिल के पास  के साथ फ़िल्मी दुनिया में कदम रखने के लिये बिल्कुल तैयार हैं, जिसका नाम उनके दादा धर्मेंद्र की फिल्म ब्लैकमेल  के गाने से लिया गया है।

"घर पर हर किसी को वो गाना पसंद है," उन्होंने दुनिया को अपने बारे में बताने के लिये बैठते हुए पैट्सी एन/रिडिफ़.कॉम से कहा।

आपके मन में क्या चल रहा है?

मुझे चिंता है कि फिल्म का क्या होगा, क्या यह लोगों को पसंद आयेगी...

फिल्म के डायरेक्टर और प्रोड्यूसर मेरे डैड हैं, इसलिये घर का माहौल काफी शांत, घबराहट, रोमांच से भरा हुआ है, और सच कहूं तो मैं चाहता हूं कि जल्द से जल्द यह काम पूरा हो जाये।

मैं चाहता हूं कि सितंबर 20 जल्दी आये और जल्दी चला जाये।

ताकि मैं आराम कर सकूं और ज़िंदग़ी के नये दौर में कदम रख सकूं।

Karan with Sahher Bambba in Pal Pal Dil Ke Paas.

फोटो: करण और साहेर बंबा पल पल दिल के पास  में।

सनी देओल ने अपनी शुरुआत अमृता सिंह के साथ एक रोमैंटिक फिल्म से की थी, जो उस समय नयी आयी थीं। बॉबी देओल ने भी अपनी शुरुआत एक रोमैंटिक फिल्म से की, जिसमें उस समय नयी आयी ट्विंकल खन्ना थीं। अब आप भी न्यूकमर साहेर के साथ रोमैंस से अपनी शुरुआत कर रहे हैं। क्या यह ज़रूरी था?

इस उम्र में आपके पास रोमैंटिक हीरो का किरदार निभाने वाली मासूमियत होती है।

मुझे नहीं लगता कि ज़्यादा बड़ी उम्र में आप ऐसा कर सकते हैं।

पहला प्यार आपके पहले रोल, कोई चीज़ पहली बार करने की तरह होता है।

इसमें ताज़ग़ी होती है और वो भावनाएँ अनोखी होती हैं।

यह बनावटी नहीं होता, सच्चा होता है।

और हम यही बात फिल्म में चाहते थे।

युवा किरदार लव स्टोरी से बेहतर जुड़ते हैं और इसे बनाना आसान होता है।

हालांकि हमने ऐसा कुछ सोच कर नहीं किया था, ऐसा हो गया।

पल पल दिल के पास  स्क्रिप्टिंग की नैचुरल प्रक्रिया का नतीजा है।

Karan with Sunny on the sets of Pal Pal Dil Ke Paas. Photograph: Kind courtesy Karan Deol/Instagram 

फोटो: पल पल दिल के पास  के सेट पर सनी के साथ करण। फोटोग्राफ: Karan Deol/Instagram के सौजन्य से

फिल्म में देर क्यों हुई?

घायल वन्स अगेन  में देर हो गयी; उसके बाद इसे शुरू किया जाना था।

आख़िरकार जब घायल  रिलीज़ हुई, तो डैड नया प्रोजेक्ट शुरू करने से पहले एक ब्रेक लेना चाहते थे।

डायरेक्टर का काम भावनात्मक और शारीरिक रूप से काफ़ी ज़्यादा थकाने वाला होता है।

उसके बाद हमने लेखक रवि और जस्सी के साथ स्क्रिप्टिंग की प्रक्रिया शुरू की। विचार-विमर्श में लगभग एक साल लग गया।

उसके बाद, उसके बाद डैड ऐसी अजीब जगहों की रीस पर चले गए कि कैमरामैन और सभी के साथ उन जगहों तक पहुँचने में समय लगा।

मुझे थोड़ी ट्रेनिंग भी लेनी पड़ी, क्योंकि उतनी ऊंचाई पर काम करने की आपको आदत होनी चाहिये, ख़ास तौर पर जब आपको ऐक्शन करना हो।

मैंने लोकल लोगों के साथ लगभग चार से पाँच महीने तक ट्रेनिंग की।

मैंने रॉक-क्लाइम्बिंग, रिवर-क्रॉसिंग और रैपेलिंग की। उसके बाद हमने अलग-अलग ऊंचाइयों पर कैम्प लगाये।

हमें एक ऐक्ट्रेस की तलाश थी, और ख़ुशक़िस्मती से हमें साहेर (बम्बा) मिल गयी।

हमने दो-तीन महीनों तक मनाली में एक वर्कशॉप किया।

15-20 दिन के शूट के बाद, भारी बरसात शुरू हो गयी।

हमने 10 दिन इंतज़ार किया, और हमारे पास वापस लौटने के अलावा और कोई चारा नहीं बचा, क्योंकि युनिट बेचैन हो रही थी।

हम मनाली वापस लौटे और हमने शूटिंग की कोशिश की, लेकिन तब बर्फ़ गिरने लगी!!

तो हमने मनाली में हर तरह के मौसम देखे।

साथ ही, हमारी पहली फिल्म होने के कारण डैड फिल्म को सीधी-सपाट तरीके से शूट करना चाहते थे। वह हमें कहानी समझाना चाहते थे, जिसमें समय लग गया।

देर होने पर आपकी मानसिक स्थिति क्या थी?

स्वाभाविक रूप से, मैं चिंतित था।

लेकिन जो होना है, वो होकर रहता है।

आप जितना निराश होंगे, उतना ही आप और आपका काम प्रभावित होगा।

इस इंडस्ट्री में सब्र रखना बहुत ज़रूरी है, क्योंकि समय आने पर आपको आपकी मेहनत का फल ज़रूर मिलता है।

आप चीज़ें मांग कर नहीं ले सकते, आपको कड़ी मेहनत करनी पड़ती है।

Father-son enjoy some time off. Photograph: Kind courtesy Karan Deol/Instagram

फोटो: बाप-बेटे की जोड़ी फुर्सत के कुछ पल बिताती हुई। फोटोग्राफ: Karan Deol/Instagram के सौजन्य से

सनी देओल बतौर पिता ज़्यादा सख़्त हैं या बतौर डायरेक्टर?

वे सख़्त डायरेक्टर हैं।

सेट पर हमेशा ख़ामोशी रहती थी।

साथ ही, वे युनिट से पहले सेट पर पहुंच जाते थे। इससे आपको भी प्रेरणा मिलती है और अनुशासन अपने आप आ जाता है।

जब तक सब कुछ सही न हो, वो रुकते नहीं थे -- चाहे छः से सात बार कूदना क्यों न पड़ जाये, वो आपको तब तक नहीं छोड़ने वाले, जब तक आप उसे सही तरीके से न कर लें।

आप आराम भी करना चाहते हों, लेकिन उन्हें आपके अगले शॉट का इंतज़ार रहेगा।

और उनकी किताब में 'अच्छा' शब्द है ही नहीं -- सबकुछ या तो 'ओके' है या 'ठीक-ठाक' -- तो आप ख़ुद पर सवाल उठाने लगते हैं।

इससे मुझे बेहतर करने का हौसला मिला है।

क्या आपको अपना पहला शॉट याद है?

मुझे कीचड़ वाली सड़क पर एक फ़ोर बाय फ़ोर पिकअप ट्रक चलानी थी। किनारे बैरियर्स नहीं थे, तो अगर आपकी ट्रक फिसली, तो आप पहाड़ से नीचे गिर जायेंगे!

जब ऐसी गाड़ी कीचड़ में फँस जाती है, तो आपको ज़ोर से ऐक्सिलरेटर दबा कर इसे बाहर लाना पड़ता है।

साथ ही आपका पूरा क्रू लाइट्स के साथ खड़ा है। उन्हें उनकी सुरक्षा की परवाह नहीं है, और मुझे उसी बात की सबसे ज़्यादा चिंता थी।

तो मैं घबराया हुआ था।

उस सीन में, मुझे निशान तक पहुंचना था और फिर खिड़की नीचे करके ऐक्ट्रेस से बात करनी थी।

पहली बार, मैं निशान से पहले रुक गया।

दूसरी बार, मैं निशान से थोड़ा आगे निकल गया।

तीसरी बार, कार (इंजन) बंद पड़ गयी।

सब मेरी तरफ़ देख रहे थे और मुझे लग रहा था कि मैं इस काम के लिये नहीं बना हूं।

मैं निराश हो गया और रोने लगा।

एक रिश्तेदार ने आकर मुझे समझाया कि सभी के अपने-अपने अच्छे-बुरे अनुभव होते हैं।

ख़ुशकिस्मती से उसके बाद सब बेहतर हुआ।

Kind courtesy Karan Deol/Instagram

फोटोग्राफ: Karan Deol/Instagram के सौजन्य से

क्या आपके पिता के डायरेक्टर होने से आपको मदद मिली, क्योंकि आपको अच्छी तरह जानने के कारण वो आपकी भावनाओं को बाहर ला सकते हैं?

हाँ। कई बार उन्होंने मेरे भीतर से कुरेद कर भावनाओं को बाहर निकाला है।

जब मैं टेक और एडिट देखता था, तो बिल्कुल अलग लगता था।

वो मुझे जानते हैं, जिसके कारण एक अलग सी ट्यूनिंग बन गयी थी।

मेरे डैड एक हीरो के आगे-पीछे घूमने वाली फिल्म नहीं बनाना चाहते थे।

वे दो किरदारों के साथ चलने वाली एक अच्छी कहानी बनाना चाहते थे। लॉन्च मूवीज़ की तरह आपको हीरो की धमाकेदार एन्ट्री इसमें नहीं दिखाई देगी।

यह कहानी हिमाचल के एक लड़के की है, जो अपना एडवेंचर स्पोर्ट्स कैम्प चलाता है और साथ ही उसका एक होम स्टे भी है।

वह अलग-अलग ग्रुप्स को सैर पर ले जाता है और उसे अपनी ज़िंदग़ी और वादियों में जीना पसंद है।

दूसरी ओर, लड़की दिल्ली की है, जिसका बैकग्राउंड बिल्कुल अलग है। वो एक व्लॉगर है, जो इन यात्रा स्थलों को रीव्यू करती है।

वो एक सैर पर आती है और वहीं से कहानी शुरू होती है।

तो यह अमीर या ग़रीब या जाति-प्रथा पर आधारित प्रेम कहानी नहीं है।

यह दो युवाओं, उनके रिश्ते और बीच में आने वाली अड़चनों की कहानी है।\

A young Karan with his father. Photograph: Kind courtesy Karan Deol/Instagram

फोटो: करण बचपन में अपने पिता के साथ। फोटोग्राफ: Karan Deol/Instagram के सौजन्य से

आप सनी देओल के बेटे हैं। क्या आपको प्रेशर महसूस होता है?

अगर आप इसे प्रेशर की तरह देखेंगे तो ज़िंदग़ी में कुछ कर नहीं पायेंगे।

मैंने कभी उन्हें सनी देओल के रूप में नहीं जाना है; वो हमेशा मेरे पापा रहे हैं।

और यह आपकी पहचान दुनिया के सामने लाने के लिये ज़रूरी है।

ऐक्शन होने के कारण लोग तुलना ज़रूर करेंगे और आप उससे भाग नहीं सकते।

मैंने इस मूवी में बहुत सारा ऐक्शन किया है, और मुझे काफ़ी चोटें भी लगी हैं।

मैंने बिना वायरिंग के लोगों को उठाया है।

मुझे लगता है मैंने अच्छा काम किया है।

क्या आप अच्छा डांस कर लेते हैं?

मैंने बहुत डांस किया है, और इसके लिये बहुत प्रैक्टिस भी की है।

लेकिन मैं बॉबी चाचा जितना अच्छा नहीं हूं, वो सबसे अलग हैं।

मैं डांस क्लासेज़ जाता था, क्योंकि झिझक दूर करनी ज़रूरी है।

आपको बहुत अच्छा डांसर बनने की ज़रूरत नहीं है, अगर आप डांस का मज़ा लेते हैं और म्यूज़िक को महसूस कर सकते हैं।

Shooting Pal Pal Dil Ke Paas. Photograph: Kind courtesy Karan Deol/Instagram

फोटो: पल पल दिल के पास की शूटिंग। फोटोग्राफ: Karan Deol/Instagram के सौजन्य से

हमें अपने पिता के साथ आपके रिश्ते के बारे में बताइये।

मूवी के बाद, हम और भी करीब आ गये हैं।

मुझपर उनका एक अनकहा विश्वास है। जैसे, ट्रेलर लॉन्च के समय, अपनी राजनैतिक ज़िम्मेदारियों के कारण उन्हें गुरदासपुर जाना पड़ा।

उन्हें लगा कि मैं लॉन्च की ज़िम्मेदारी संभाल सकता हूं, और किसी तरह मैंने कर भी लिया।

उनका विश्वास धीरे-धीरे और भी मज़बूत होता जा रहा है।

उम्मीद है कि मैं उनके कंधों से एक और बोझ कम करके परिवार के प्रॉडक्शन हाउस को आगे बढ़ा पाउंगा।

उनके साथ बड़ा होना मज़ेदार था। हमने काफ़ी कुश्ती लड़ी है।

वो अपनी शूट्स में व्यस्त रहते थे, तो जब भी हमें फ़ुर्सत के पल मिल जायें, हम पूरी मस्ती करते थे।

लंबे समय तक बाहर रहने पर वो हमेशा गिफ़्ट्स लेकर ही लौटते हैं।

उनकी फिल्में देखने के बाद वो मेरे सुपरहीरो और आदर्श बन गये।

लेकिन मुझे अपने पिता से डर ज़रूर लगता था।

Karan with his grandfather Dharmendra. Photograph: Kind courtesy Karan Deol/Instagram

फोटो: करण अपने दादा धर्मेंद्र के साथ। फोटोग्राफ: Karan Deol/Instagram के सौजन्य से

आपके दादा धर्मेंद्र के साथ आपका रिश्ता कैसा रहा है?

मैं उनसे थोड़ा शर्माता हूं, लेकिन बचपन में हमने कई ख़ास पल बिताये हैं।

मैं अपने वीडियो गेम्स खेलता रहता था और वो पत्ते, तो कहीं न कहीं हमारी अच्छी बनती थी।

हम बातें किया करते थे।

मुझे कुश्ती बड़ी पसंद थी, तो वो मेरे साथ कुश्ती लड़ते थे।

आपकी मनपसंद धर्मेंद्र और सनी देओल फिल्म कौन सी है?

दादा की चुपके चुपके, क्योंकि उसमें अमिताभ (बच्चन) सर और उनके बीच की कॉमिक टाइमिंग देखने लायक है।

डैड की अर्जुन; उस मूवी को सदाबहार कहा जा सकता है, क्योंकि देश आज भी उन्हीं समस्याओं से जूझ रहा है।

आपके दादा का हिट गाना आपकी फिल्म का नाम है।

कहा जा सकता है कि यह उनका सबसे ख़ूबसूरत गाना है। बेहद रोमैन्टिक है।

और पल पल दिल के पास  दिल को छूने वाला वाक्य है।

यह डैड का मनपसंद गाना है; इसे रोमैन्टिक फिल्म का टाइटल बनाना उनके लिये ख़ुशी की बात थी।

उन्हें लगा कि यह स्थिति के अनुसार बिल्कुल सही फिट होता है।

आप हिंदी सिनेमा से ज़्यादा प्रभावित हैं या इंटरनेशनल से?

मैं नये हिंदी सिनेमा से प्रभावित हूं क्योंकि अब यह काफ़ी आगे निकल चुका है।

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पैट्सी एन